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महापुराण
और हिन्दू मुनि बन गये। कुछ समयके बाद शतबिन्दु मरकर सौधर्म स्वर्गमें देवता हुआ तथा हरिशर्मा ज्योतिष देव हआ। वे दोनों जमदग्निकी पवित्रताकी परीक्षा करना चाहते थे। उन्होंने चिड़ी-चिड़ाका रूप धारण कर जमदग्निके बालोंमें घोंसला बना लिया। और कुछ उसके प्रति अपमानजनक बातें करने लगे। वह पक्षियोंपर नाराज हो गये और उन्हें मारनेको धमकी दी। उन पक्षियों में से एकने कहा कि उसे नहीं मालूम कि वह ( जमदग्नि ) इसलिए स्वर्ग न पा सका क्योंकि उसके पुत्र नहीं है। जमदग्निने इसपर विचार किया और मामाके पास जाकर उसने उसकी क-यासे विवाह करने का प्रस्ताव किया। बुढ़ापा होनेसे कन्या उससे विवाह नहीं करना चाहती थी। इसपर क्रुद्ध होकर उसने नगरको सब कन्याओंको बौना होनेका शाप दे दिया। तबसे उस नगरका नाम कान्यकुब्ज पड़ गया ( आधुनिक कन्नौज)। उसे किसी प्रकार मामाको लड़की मिल गयी, उसका नाम रेणुका (धूलभरी) मिल गयो। उसे केला दिखाकर आ अपनी गोदमें बैठा लिया। उससे विवाह कर लिया। चूँकि उसने कहा कि वह उसे चाहती थी। समय बीतनेपर उसने दो पुत्रोंको जन्म दिया-इन्द्रराम और श्वेतराम । उसके भाइयोंने उसे दानमें एक गाय दी थी जो सब मनोकामनाएं पूरी करता थी, और मन्त्र फरशा दिया। रेणुका और जमदग्नि सुखपूर्वक रहते थे । एक दिन राजा सहस्रबाहु अपने पुत्र कृतवीरके साथ मुनिकी कुटियापर आया। रेणुकाने उन्हें राजकीय भोज दिया। पिता-पुत्र भोजनकी श्रेष्ठतासे प्रभावित हुए और उन्होंने पूछा कि मुनिकी पत्नी होते हुए रेणुकाने उनको इतना व्ययसाध्य भोजन कैसे दिया। रेणुका बोली कि उसके भाइयोंने गाय दी है वह मनचाही चीजें देती है । कृवीरने वह गाय चाही और रेणुकाक विरोधके बावजूद वह उसे ले गया। कृतवीर और जमदग्निकी जो लड़ाई हुई उसमें सहस्रबाहुने जमदग्निको मार डाला। उसके पुत्र इन्द्रराम और श्वेतराम बाहर थे। जब वे लोटे तो उन्हें अपनी माँस पता चला कि उनके पिताको सहस्रबाह और उसके पुत्रने मार डाला है और वे उनकी गाय ले गये हैं। वे क्रुद्ध हुए। रेणुकाने उन्हें परशुमन्त्र पढ़ाया। तब वे सावेत गये और सहस्रबाह तथा कृतवीर तथा घरके दूसरे सदस्योंको तथा क्षत्रियजातिको इक्कीस बार हत्या की। समस्त क्षत्रियोंके विनाशके बाद उन्होंने सारी धरती ब्राह्मणोंको दे दी जिसपर उन्होंने बादमें शासन किया। सहस्रबाहुकी रानो विचित्रति उस समय गर्भवती थी, उसके गर्भसे पूर्वजन्मकी आत्मा भूपालके नामसे पैदा हई, जिसकी नियति आगे चक्रवर्ती होने की थी। वह जीवनकी सुरक्षाके लिए जंगल में भाग गयी। शाण्डिल्य मुनिने उसे संरक्षण दिया । उसको कुटियामें उसने बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम सुभौम रखा गया।
LXVI-सुभौमने अपना बचपन जंगलमें शाण्डिल्य मुनिकी कुटियामें बिताय।। वह एक शक्तिशालो दृढ़ युवक बन गया। एक दिन उसने अपनी मासे पूछा कि उसने अपने पिताको नहीं देखा और उनके बारे में बताने के लिए आग्रह किया। तब माने सारी कहानी सुनायी कि किस प्रकार सहस्रबाहु परशुरामके द्वारा मारे गये। इसी बीच एक ज्योतिषी परशुरामके घर आया और उसने बताया कि उसकी मृत्यु किस प्रकार होगी। उसने कहा कि उसके शत्रुओं ( सहस्रबाहु और कृतवीर ) के दांतोंसे भरी थाली, जिसके दृष्टिपातसे चावलोंकी थालमें बदल जायेगी, वह उसका वध करनेवाला होगा। इसपर परशुरामने नगरके मध्य एक दानशाला खुलवायो जहाँ ब्राह्मणोंको मुफ्त भोजन दिया जाता और उन्हें दांतोंको थाली दिखाई जाती । सुभौमसे भी दानशालेकी भेंट करने के लिए कहा गया, यह जाननेके लिए कि क्या यही वह व्यक्ति है जिसके हाथों परशुरामकी मौत होगी। तब सुभौम दानशालामें गया, उसने थाली देखी जो पके हुए चावलोंके रूपमें बदल गयी । रक्षकोंने फौरन हमला कर दिया जब कि वह निहत्था था। परन्तु वह थाली ही तत्काल चक्रमें बदल गयी जिससे उसने उनका और परशुरामका अन्त कर दिया। उसके बाद वह चक्रवर्ती हो गया। एक बार सुभौमको उसके रसोइएने चिका फल परोसा। वह क्रूद्ध हो उठा और उसने इस अपराधके लिए रसोइएको मार डाला। रसोइया ज्योतिष देव उत्पन्न हुआ। वह व्यापारीका रूप धारण करके आया और राजाको कुछ सुन्दर फल दिये। राजाने उन फलोंको खूब पसन्द किया और व्यापारोसे और फल लानेका आग्रह
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