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परिचयात्मिका भूमिका
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LIX-पन्द्रहवें तीर्थकर धर्मनाथको जीवनीके लिए तालिका देखिए। इनके तीर्थकालमें बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासूदेवका पांचवां समूह हआ। वीतशोकनगरमें नरवृषभ राजा हआ। उसने तपस्या की और मरकर वह सहस्रार स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। राजगृहमें राजा सुमित्र था। वह राजसिंहसे लड़ाईमें मारा गया। सुमित्रने तपस्या की और मरते समय यह निदान बाँधा कि मैं अगले जन्ममें राजसिंहको पराजित करूँ। मृत्युके बाद वह महेन्द्र स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। राजसिंह अगले जन्ममें हस्तिनापुरका राजा मधुक्रीड़ हुआ। राजा नरवृषभ और सुमित्र राजा सिंहसेनको रानियों विजया और अम्बिकासे उसके पुत्र हुए, उनके नाम सूदर्शन और पुरुषोत्तम थे, जो पांचवें बलदेव और वासुदेव थे। राजा मधुक्रीड़ने दुत भेजकर सुदर्शनसे कर मांगा जिसे उसने अस्वीकार कर दिया। उनमें युद्ध हुआ। पुरुषोत्तमने मधुक्रीड़ो मार डाला और अर्धचक्रवर्ती सम्राट् बन गया। उसी राज्यमें साकेतमें राजा सुमित्र था। उसको रानी भद्रा थी। उसने एक पुत्रको जन्म दिया, उसका नाम मघवन था। उसने समस्त छह खण्ड धरती जोत ली और जैनपुराणविद्याके अनुसार तीसरा सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राट् बन गया। बहुत समय तक धरतीका उपभोग करने के बाद उसने संसारका परित्याग कर मोक्ष प्राप्त किया। थोड़े समयके बाद उसो शासनकालमें चौया चक्रवर्ती हुआ, उसका नाम सनत्कुमार था । वह विनीतपुरके राजा अनन्तवीर्य और रानो महादेवीका पुत्र था। वह अत्यन्त सुन्दर था । इन्द्रके द्वारा प्रेषित दो देव उसका सौन्दर्य देखने आये। उन्होंने राजासे कहा कि कुमारका सौन्दर्य शाश्वत रहेगा यदि उसे बुढ़ापे और मोतने नहीं घेरा। बुढ़ापे और मृत्युका नाम सुनकर सनत्कुमारने संसारका परित्याग कर दिया और निर्वाणलाभ किया।
LX-अमोघजीत नामके ब्राह्मणने भविष्यवाणी की कि छह महीने बाद राजा श्रीजीवके सिरपर
गरेगी, जो वासुदेव त्रिपृष्ठका पुत्र है और उसके सिरपर रत्नोंकी वर्षा होगी। जब ब्राह्मणसे यह पूछा गया कि वह इस प्रकारका भविष्यकथन कसे कर सकता है तो उसने कहा कि मैंने प्रसिद्ध शिक्षकसे यह विद्या पढी है। एक दिन जब उसने अपनी पत्नीस भोजनके लिए कहा तो उसने थालीमें खाली कौड़ियाँ परोस दी, क्योंकि गरीबीके कारण उसके घरमें कुछ और था ही नहीं। पत्नीने उसे झिड़का कि तुम कुछ काम करके धन नहों कमाते । ठोक इसी समय आगकी चिनगारी उसको थालीमें गिरी, ठीक इसी समय पानीका घड़ा उसकी पत्नीने उसके सिरपर डाल दिया। यह इस घटनाके कारण था कि ब्राह्मणने यह भविष्यवाणी को थी कि राजाके सिरपर बिजली गिरेगी और उसके सिरपर रत्नोंको वर्षा होगी। तत्पश्चात् मन्त्रियोंने राजाको सलाह दी कि देवो विपत्तिको टालने के लिए कुछ समयके लिए राज्य छोड़ दिया जाये और तबतक के लिए किसी दुसरेको गद्दोपर बैठा दिया जाये । इसके बादको सन्धि श्रीविजय और अमिततेज विद्यावरके बीच हुई शत्रुता और संघर्षका वर्णन करती है। एक मुनि हस्तक्षेप करते हैं और उन्हें जैनसिद्धान्तोंका उपदेश देते हैं। इसके परिणामस्वरूप वे दोनों दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं।
LX1-अगले जन्ममें श्रीविजय और अमिततेज स्वर्ग में देव हए. मणिचुल और रविचलके नामसे । अगले जन्ममें प्रभावती नगरके राजा स्मितसागरके रानी वसुन्धरा और अपराजितासे पुत्र हुए। उनके दरबारमें दो सुन्दर नृत्यांगनाएँ थों, जिनकी विद्याधर राजा दमितारिने मांग की।
LX.LXIII-ये चार सन्धियाँ तीर्थकर शान्तिनाथ और उनके पूर्वभवोंका, विशेषरूप और खासकर चक्रायुधकी, जीवनी विस्तारसे ( LXIII ) जिसका टिप्पणमें विस्तार है।
LXIV-कुन्थकी जीवनी के लिए तालिका देखिए।
LXV-अर्हके जोवनके लिए तालिका देखिए। अर्हके शासनकालमें आठवें चक्रवर्ती सुभौम हुए। सहस्रबाह नामका राजा था। उसकी पत्नो विचित्रमतीने कृतवीर पुत्रको जन्म दिया। विचित्रम तीकी बहन श्रीमतोका विवाह शतबिन्दुसे हुआ था। उनसे जो पुत्र हुआ उसका नाम जमदग्नि रखा गया। बचपनमें माताकी मृत्युके कारण जमदग्नि तापसमुनि बन गया। शतबिन्दु और उसका मन्त्री हरिशर्मा भी क्रमशः जैन
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