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परिचयात्मिका भूमिका
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बाद विजयने अपनी राजधानी श्रीविजय को सौंप दी और तपस्या कर मुक्ति प्राप्त की स्वयंप्रमाने भो यही किया ।
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वासुपूज्य की जीवनीके लिए तालिका देखिए ।
1. IV यह सन्धि बलदेव, वासुदेव और प्रतिवादेव के दूसरे समूहका वर्णन करती है। विन्ध्यपुरमें कनकपुरका रामा सुपेग उसका मित्र या सुषेणके पास गुणमंजरी नामकी
विन्ध्यशक्ति राज्य करता था सुन्दर वेश्या थी कि उसके पास दूत भेजा कि वेश्या उसे दे दी जाये। सुषेणने प्रार्थना ठुकरा दी। दोनों मित्रोंमें युद्ध छिड़ गया। सुषेण पराजित हुआ। मित्रको पराजय सुनकर महापुरके वायुरच सांसारिक जीवन विरक्त हो गया वह मुनि बन गया। सुपेणने भी मुनित्रतकी दक्षा ले ली। उपने मरते समय अपने वैरका बदला लेनेका निदान बाँधा । वायुरथ और सुषेण दोनों प्राणत स्वर्ग में देव हुए । राजा शक्ति भी किसी एक स्वर्गमे उत्पन्न हुआ। अगले जन्म में विन्ध्यशक्ति भोगवर्धनपुरके राजा श्रीधर और रानी श्रीमतीका पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम तारक था। समय की अवधि में वह अर्धवर्ती बन गया । वायुरथ और सुषेण राजा ब्रह्मा एवं रानी सुभद्रा और उषादेवीके पुत्र हुए। अचल और द्विपृष्ठ उनके नाम थे जो बलदेव और वासुदेव थे। उनके पास श्रेष्ठ हावी था। तारक उस हाथीको अपने पास रखना चाहता था और उसने द्विपृष्ठके पास हाथी देनेके लिए दूत भेजा । अचलने मना कर दिया । तारक और द्विपृष्ठमें संघर्ष हुआ, जिसमें तारक मारा गया । द्विपृष्ठ अर्ध वक्रवर्ती बन गया । मृत्युके बाद तारक और द्विपृष्ठ नरक गये। अपने भाईको मृत्यु देखकर अचलने जैन दीक्षा ग्रहण कर ली और उसने संसाररी मुक्ति प्राप्त कर ली ।
1. V - तेरहवें तीर्थंकर बिमलकी जीवनी के लिए तालिका देखिए । IVI नमी विदेहके श्रीपुर में राजा नन्दिमित्र था एक दिन उसे संसारकी क्षणभंगुरताका ज्ञान हो गया, सुखभोग छोड़कर उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। मृत्युके अनन्तर यह अनुत्तर विमान में देव हुआ । श्रावस्ती में सुवे तु नामका राजा था। उसी नगर में दूसरा राजा बली था । वे एक दिन जुआ खेले जिसमें सुकेतु सब कुछ हार गया निराशामें वह मुनि बन गया। परन्तु तपस्या करते हुए उसने यह निदान बाँधा कि उसे बलीसे अगले जन्म में बदला लेना चाहिए । मृत्युके बाद सुकेतु लान्तव स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । बली भी स्वर्ग में देव उत्पन्न हुआ । अपने अगले जन्मों में बली रत्नपुरके राजा समरकेशरी और रानी सुन्दरीका पुत्र हुआ । उसको मधु कहा गया। वह प्रतिवापुदेव और अर्धचक्रवर्ती था । नन्दिमित्र और सुकेतु द्वारावतीके राजा रुद्रकी पत्नियों सुभद्रा और पृथ्वीसे उत्पन्न हुए उनके नाम थे धर्म (बलदेव) और स्वयम्भू ( वासुदेव ) । एक दिन स्वयम्भूने जब अपने महलको छतपर बैठा हुआ था, शहरके बाहर सैनिक शिविरको ठहरा हुआ देखा। उसने मन्त्री से पूछा कि यह सेना किसकी है। मन्त्रीने उससे हा कि सामन्त शशियोमने राजा मधुको उपहार भेजा है जिसमें हाथी-घोड़ा आदि हैं । स्वयम्भूने इसकी अनुमति नहीं दी। उसने शशिसोमको हरा दिया और उपहार छीन लिया। यह खबर मधुके कानों तक पहुँची। उसके बाद उसने स्वयम्भूपर हमला बोल दिया। बाद में जो लड़ाई हुई उसमें स्वयम्भू ने मधुका काम तमाम कर दिया यह अर्थ हो गया। राज्यका उपभोग करते हुए स्वयम्भू भी मरकर नरकमें गया। धर्मने मुनित्रमंको दीक्षा ली और निर्वाण प्राप्त किया।
LVII — यह सन्धि संजयन्त मेह और मन्दरकी कहानीका वर्णन करती है। इनमें से दो बादमें विमलवाहनके गणधर हुए, जो तेरहवें तीर्थंकर थे । दो और आदमी थे जो इस कहानीसे सम्बन्धित हैंमन्त्री श्रीभूति और व्यापारी भद्रमित्र । इनमें से श्रीभूति सत्यघोषसे संलग्न है । पहले तीन व्यक्तियो के सात भवका कवि वर्णन करता है जब कि अन्तिम दोके कुछ ही भवका वर्णन करता है। इस सन्धि के टिप्पण में इनकी सूची पर दृष्टिपात किया गया है जिससे पाठकों को समझने में सुविधा होगी ।
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