Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
View full book text
________________
३६
(४) सरल और अकृत्रिम रूप में आकर्षक और सुन्दर शैली द्वारा कथाओं को प्रस्तुत
किया गया है । (५) प्रेम के स्वस्थ चित्र भी उपलब्ध है। (६) कथा में रस बनाये रखने के लिए परिमित और संतुलित शब्दों का प्रयोग
किया है। (७) धर्म कथा होने पर भी इसमें चोर, विट, वेश्या, धूर्त, कपटी, ठग, लुच्चे और
बदमाशों के चरित्र-चित्रण में लेखक को अद्भुत सफलता मिली है । (८) इन कथाओं का प्रभाव मन पर बड़ा गहरा पड़ता है । (९) तरंगित शैली में कृतघ्न कौत्रों को कथा, वसन्त तिलका गणिका की कथा,
अगडदत्त के अटवी गमन की कथा, रिपुदमन नरपति की कथा, स्वच्छंद चरित वाली वसुदत्ता की कथा एवं विमलसेना की कथा, प्रभृति कथाएं लिखी गयी है। इस कृति में लघु कथाएं बृहत्कथाओं के संपुट में कटहल
के कोयों की तरह सन्निबद्ध हैं। (१०) लोककथाओं को अनेक कथानक रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है। (११) कथानों के मध्य में धर्मतत्त्व नमक की उस चुटको के समान है, जो सारे
भोजन को स्वादिष्ट और सुखकर बनाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org