Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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पर उसने तापसी व्रत की कठोरता और नियम की दृढ़ता बतलाते हुए कहा -- " आपके अत्यधिक आग्रह और मानसिक सन्ताप के कारण में अबकी बार पुन: आपके यहां पार के लिये आऊंगा, किन्तु इस समय अब लौटकर नहीं जा सकता हूं ।"
तीसरी बार जब पारणा का समय आया तो संयोगवश राजा के यहां पुत्र उत्पन्न हुआ। सभी परिजन पुरजन पुत्रोत्सव सम्पन्न करने में संलग्न थे । चारों ओर व्यस्तता का वातावरण व्याप्त था । इसी बीच अग्निशर्मा पारणा करने राज प्रासाद में पहुंचा, किन्तु वहां किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । फलतः इस बार भी वह घूम-फिर कर यों ही लौट आया । अब उसके मन में भयंकर प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई । उसने इसे भी गुणसेन का मजाक समझा और बचपन में घटित होने वाली घटना के साथ कारण-कार्य की श्रृंखला जोड़कर निदान किया कि मैं अगले भवों में अपनी तपश्चर्या के प्रभाव से इस गुणसेन बदला चुकाऊंगा ।
गुणसेन को तीसरी बार भी बिना पारणा किये अग्निशर्मा के लौटाने से बड़ा कष्ट हुआ । उसने अपने पुरोहित सोम शर्मा को भेजकर अग्निशर्मा का समाचार मंगाया । सोम शर्मा अग्निशर्मा के पास गया। उसने देखा कि अग्निशर्मा भूख की ज्वाला और क्रोध के सन्तापसे बहुत दुःखी है । गुणरोन के नाम से उसे बहुत चिढ़ है और वह निदान बांधा कर समाधि ग्रहण कर चुका है। उसने कुलपति से निवेदन कर दिया है कि राजा गुणसेन यहां न आने पाये ।
सोम शर्मा इस समाचार को लेकर राजा गुणसेन के पास लौट आया । राजा गुणसेन कुलपति के पास स्वयं पहुंचा और उसने अपने आन्तरिक दुःख को कुलपति से निवेदित किया। कुलपति की बातों से उसे स्थिति का पता लग गया, अतः वह लौट आया । अब वसन्तपुर निवास करना उसे खटकने लगा । अतएव वह अपनी राजधानी क्षितिप्रतिष्ठित नगरी में लौट आया । अग्निशर्मा ने निदान बांध कर तपश्चरण किया। अतः वह मरकर भवनवासी द ेवों में विद्युत्कुमार जाति का देव हुआ । जब गुणसेन प्रवृज्या धारणकर प्रतिमायोग में स्थित होकर आत्मसाधना कर रहा था उस समय विभंगावधि के द्वारा गुणसेन को अपना शत्रु जानकर अग्निशर्मा का जीव वह विद्युत्कुमार वहां आया और उसे अग्नि में जलाकर मार डाला ।
विश्लेषण -- - उपर्युक्त कथावस्तु का विश्लेषण करने पर निम्न कथानकों की श्रृंखला उपलब्ध होती है:
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मनोरंजन का
(२) गुणसेन द्वारा प्रतिदिन तंग किये जाने से अग्निशर्मा साधु बन गया । (३) वृद्ध होने पर राजा पूर्णचन्द्र गुणसेन को राज्य देकर तप करने चला गया । (४) गुणसेन एक दिन वसन्तपुर में आया ।
( ५ )
वह भ्रमण करने के लिये घोड़े पर सवार होकर निकला और थककर सहस्राम्प्रवन में विश्राम करने लगा ।
( १ ) अपनी कुरूपता के कारण अग्निशर्मा राजकुमार गुणसेन
साधन था ।
( ६ ) तापस कुमारों द्वारा सुपरितोष नामक तापस आश्रम का परिचय पाकर वह कुलपति के पास गया और उन्हें अपने यहां भोजन का आमन्त्रण दिया ।
(७) अग्निशर्मा तपस्वी के उग्रतपश्चरण को अवगत कर उसके दर्शन के लिये राजा
गुणसेन गया ।
(८) प्रश्नोत्तर से उसने उसे अपना बचपन का साथी ज्ञात किया और आग्रहपूर्वक पारणा का निमन्त्रण दिया ।
१४-.-२२ एडु०
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