Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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वसुभूति - - " श्राज में अनंग सुन्दरी के घर गया था । को देख मैंने उससे पूछा -- सुन्दरि ! तुम्हारे उद्वेग अकथनीय न हो तो कहो, "। उसने कहा-
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" एकान्त सरल हृदय से कैसे कहा जा सकता है, जहां आदर्शगत प्रतिबिम्ब के समान दुःख संक्रान्त नहीं होता" । मैने कहा- "सुन्दरि ! इस संसार में विरले गुणज्ञ हैं, विरले ललित काव्य का प्रणयन करते हैं, विरले परिश्रमी निर्धन होते हैं तथा विरले दूसरे के दुःख से दुःखी होते हैं । इतना सब होने पर भी मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करने की चेष्टा करूंगा ।" उसने कहा यदि ऐसी बात है तो सुनो--"महाराज की एक पुत्री विलासवती नाम की है, वह भिन्न शरीर होती हुई भी मेरी श्रात्मा के समान हैं, स्वामिनी होती हुई भी सखी के समान है । वह पूर्ण युवती हैं।" इसपर मैंने कहा -- " सुर-असुरों को जीतने वाले, रति के मन को प्रानन्दित करने वाले, उस कुसुम सायक के शासन को किस वीतरागी ने भंग किया है ?" वह बोली- यह तो मैं नहीं जानती कि किसी ने भंग किया है या नहीं, पर इतना सत्य है कि उसके मनोरथ को पूर्ण करने का अभी मार्ग मुझे नहीं दिखलाई पड़ा है उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- "मदन के मधुर महोत्सवारम्भ में नगर के उल्लासपूर्ण वातावरण के हो जाने पर गीत गाने वाली सखियों से अवगत हुआ कि उसने मूर्तिमान कुसुमायुधं के सदृश्य किसी युवक को देखा है । इसकी अभिलाषा उचित स्थल में ही जागृत हुई है। पंकजश्री शमीवन की कामना नहीं करती। उसने अपने हाथों से बनायी बकुल पुष्पमालिका को उसके गले में पहना दिया है। वह भी जन सम्पात के भय से उस माला को लेकर चुप-चाप चला गया है । विलासवती उसी समय से लेकर मन्मथ द्वारा अशक्त बना दी गयी है । मैंने स्वामिनी को आश्वासन दिया है । पुनः राजमार्ग की ओर देखती हुई मूछित हो गयी है ।"
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आज वह
मलिन मुखकमल अनंग सुन्दरी का कारण क्या है ? यदि
वसुभूति के उक्त वार्त्तालाप को सुनकर सनत्कुमार बोला -- " मित्र ! वह हृदय को श्रानन्द देने वाली कहां है ? दिखलाओ मुझे, उसके बिना यह जीवन व्यर्थ है ।"
इस प्रकार मित्रों के उपर्युक्त वार्तालाप द्वारा उनकी प्रेम विभोर स्थितियों का बहुत ही स्वाभाविक चित्रण हुआ है । इन वार्तालापों में कृत्रिमता की गन्ध नहीं है । इन कथोपकथनों से ऐसा नहीं लगता कि ये कल्पित पात्रों के बीच हो रहे हैं ।
मित्र गोष्ठी में प्रश्नोत्तर के रूप में चित्रमति, भूषण, विशाल बुद्धि और कुमार गुणचन्द्र के बीच जो वार्तालाप हुआ है, वह बुद्धि चमत्कार के साथ "अष्टमभव" के नायक कुमार गुणचन्द्र के चरित्र पर प्रकाश डालता है । इस प्रकार के मनोरंजक प्रश्नोत्तर रूप वार्त्तालाप को उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया जाता है। चित्रमति - "कामिनियां क्या देती हैं ? शिवजी को कौन प्रणाम करता है ? सांप क्या करते हैं ? किरणों से चन्द्रमा किसे प्रकाशित करता है ?"
कमार गणचन्द्र
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-" 'नहंगणाभोग' - - नह - नख, गुणा भोगं भोगम् । नख - नखक्षत को कामिनियां देती हैं, गण-प्रमथादि गण शिव को प्रणाम करते हैं । सर्प भोग-फणवितान करते हैं और चन्द्रमा किरणों से प्रकाश रूपी प्रांगन के विस्तार को प्रकाशित करता है ।"
विशाल बुद्धि-- " रथ का कौन अंग उत्तम होता है ? बुद्धि के प्रसाद से कौन मनुष्य जीवित है ? बाला क्या करती हुई नूपुर ध्वनि को प्रकाशित करती हैं ?"
१ - स०, पृ० ७४४ । २ -- वही, पृ० ७४४ ।
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