Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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थोड़ा हंसकर कुमार ने कहा - " 'चक्कमन्ती' -- चक्र, मन्त्री, चक्रमाण रथ के अवययों में -पहिया उत्तम है, बुद्धि के प्रसाद से मंत्री जीवित रहता है और चक्रमण - नृत्य करती या अधिक चलती हुई बाला नूपुर ध्वनि करती हैं ।"
वक्र
भूषण -- "क्या पीते हैं ? कमल का कौन-सा भाग पहले ग्रहण करते हैं ? वैरी को क्या देते हैं ? नयी बधू का रत कैसा होता है ? उपधा स्वर में मुख या वाक्य कैसा होता है ? परलोक में क्या देते हैं ? वानर-हनुमान ने किसे जलाया था ? बधू किसको गमन करती है ? कैसे अमृत मंथन में दसों दिशाओं में देवासुर लोग भाग गये ? त्रैलोक्य चाहता हूँ ? युवतियां अपने मुख को किस प्रकार सर्वदा दिखलाती हैं ?"
कुमार गुणचन्द्र - - " 'कष्णालंकारमणहरं सविसेसं' कं, नालं, कार, मनोहरं, सविशेषम्, कन्या, लंका, रमणगृह, सविषे अमृत मथने शं, अलंकारमनोहरं सविशेषम् - जल को पीते हैं । पहले कमल के नाल को ग्रहण करते हैं ? रिपु को तिरस्कार देना चाहिये, नव बध का रत सुमनोहर होता है, उपधा स्वर में मुख- वाक्य सविशेष होता हैं, परलोक में कन्यादान देते हैं, हनुमान ने लंका जलायी, बधू पतिगृह को गमन करती हैं, विषयुक्त अमृत मन. देवासुर लोग दसो दिशाओं में भाग गये, त्रिलोक सुख चाहता है और युवतियां सर्वदा अपने मुख को विशेष मनोहर दिखलाती हैं ।"
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इस प्रकार उक्त मित्र गोष्ठी में प्रश्नोत्तर और पहेलिकानों के रूप में वार्तालाप सम्पन्न हुआ है । इस कथोपकथन में बुद्धि का व्यायाम तो है ही, साथ ही अनेक विषयों की जानकारी निहित हैं । " अष्टमभव" की कथावस्तु को अग्रसर करने में इस वार्तालाप का महत्वपूर्ण स्थान है ।
"समराइच्चकहा" के "नवमभव" में प्रशोक, कामांकुर, ललितांग और कुमार समरादित्य की एक मित्र गोष्ठी आती है । इस गोष्ठी के मित्र मनोहर गीत गाते हैं, गाथाएं पढ़ते हैं, वीणा बजाते हैं, नाटकों की प्रशंसा करते हैं, कामशास्त्र के गहन विषयों पर चर्चा करते हैं, चित्र दिखलाते हैं, सारस पक्षियों, चकवों एवं कामिनियों की चर्चा करते हैं । ये जलाशयों में जाकर जलक्रीड़ा करते हैं, पुष्पवाटिकाओं में परिभ्रमण करते हैं, मलों पर झूलते हैं और पुष्पों की शय्या सजाते हैं । इस गोष्ठी के मित्रों के वार्तालाप कामशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं अन्य लौकिक कला-कौशलों के संबंध में सम्पन्न होते हैं । कुमार समरादित्य से लौकिक और पारमार्थिक विषयों पर चर्चाएं, विवाद एवं वार्ताएं होती हैं । इस मित्र गोष्ठी के संवाद बहुत हो कलापूर्ण हैं । इनसे कथावस्तु के विकास में पूरा सहयोग प्राप्त होता है ।
मित्र गोष्ठियों के अतिरिक्त हरिभद्र के समय में धूर्त गोष्ठियां भी होती थीं। इन गोष्टियों के वार्त्तालाप हास्य और व्यंग्य से परिपूर्ण हैं । जीवन की श्रान्ति और क्लान्ति को दूर करने में ये वार्तालाप सहायक सिद्ध हो सकते हैं ।
धूर्त्ताख्यान में पांच धूर्तो के सुन्दर व्यंग्यपूर्ण संवाद श्राये हैं। उदाहरणार्थ दो-एक कथोपकथन उद्धृत किये जाते हैं ।
खण्डपाना--" एक समय ऋतुस्नान कर में मंडप में सोई हुई थी, तो पवन ने मुझसे संभोग किया। इसके फलस्वरूप मुझे पुत्र उत्पन्न हुआ और वह मुझसे उसी क्षण श्राज्ञा लेकर कहीं चला गया।"
मूलदेव -- "महाभारत के अनुसार पवन ने कुन्ती से सम्भोग किया, जिससे भीम पैदा हुआ था । इसी तरह पवन द्वारा भोग किये जाने पर अंजना ने हनुमान को जन्म दिया था । अतः तुम्हारे भी पवन सम्भोग द्वारा पुत्र होना सत्य है ।"
? स, पृ० ७४५ ।
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