Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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को भी स्वीकार किया जा सकता है। इन सबका उपयोग लौकिक एवं निजधरी कथाओं में बराबर होता रहा है। ऐसा लगता है कि लोकसाहित्य में कई बार प्रयक्त एवं रूद होकर ये रूढ़ियां प्राचार, विश्वास एवं कल्पनाओं द्वारा अभिजात साहित्य तक पहुंची हैं और यहां प्राकर इन्हें एक निश्चित रूप प्राप्त होता है।
विषय की दृष्टि से कथानक रूढ़ियों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। (१) घटना प्रधान, (२) विचार या विश्वास प्रधान। (१) घोड़े का आखेट के समय निर्जन वन में पहुंच जाना, मार्ग भूलना, समुद्र
यात्रा करते समय यान का भंग हो जाना और काष्ठफलक के सहारे नायक-नायिका की प्राणरक्षा, जैसी घटनात्मक रूढ़ियां इस कोटि के
अन्तर्गत हैं। (२) स्वप्न में किसी पुरुष या किसी स्त्री को देखकर उस पर मोहित होना
प्रथवा अभिशाप, यन्त्र-मंत्र, जादू-टोना के बल से रूप परिवर्तन करना प्रादि विचार या विश्वास प्रधानरूढ़ियों के अन्तर्गत पाते हैं। हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में प्रयुक्त रूढ़ियों या कथानक अभिप्रायों को
निम्न वर्गों में विभक्त किया जा सकता है:(१) लोक प्रचलित विश्वासों से सम्बद्ध कथानक रूढ़ियां। (२) व्यन्तर, पिशाच, विद्याधर अथवा अन्य अमानवीय शक्तियों से सम्बद्ध
रूढ़ियां। (३) देवी, देवता एवं अन्य अतिमानवीय प्राणियों से सम्बद्ध रूढ़ियां। (४) पशु-पक्षियों से सम्बद्ध रूढ़ियां। (५) तन्त्र-मंत्रों और प्रौषधियों से सम्बद्ध रूढ़ियां । (६) ऐसी लौकिक कथानक रूढ़ियां जिनका सम्बन्ध यौन या प्रेम व्यापार
(७) कवि कल्पित कथानक रूढ़ियां । (८) शरीर वैज्ञानिक अभिप्राय । (९) सामाजिक परम्परा, रीति-रिवाज और परिस्थितियों को द्योतक रूढ़ियां ।
(१०) आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक रूढ़ियां। लोक प्रचलित विश्वासों से सम्बद्ध कथानक रूढ़ियों से तात्पर्य यह है कि अल्पशिक्षित एवं अल्पसभ्य मानव समुदाय में अनेक प्रकार के अन्धविश्वास प्रचलित हैं। इन विश्वानों के द्वारा अनेक प्रकार की घटनाएं घटित होती है। हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में इस कोटि की निम्नांकित कथानक रूढ़ियां पायी जाती हैं :---
(१) स्वप्न द्वारा भावी घटनाओं की सूचना, (२) शुभ शकुनों द्वारा भावी संकेत, (३) अपशकुनों द्वारा सूचनाएं,
(४) भविष्य वाणियां। (१) स्वप्न द्वारा भावी घटनाओं की सूचना--
किसी पात्र द्वारा देखे गये स्वप्नों के अनुरूप भावी घटनाओं की योजना प्राकृतकथानकों की एक अत्यन्त प्रचलित रूढ़ि है। हरिभद्र ने अपने कथानकों को गति, विस्तार अथवा मोड़ देने के लिए इस रूढ़ि का कई स्थानों पर प्रयोग किया है। जब किसी
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