Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 409
________________ सकती है । फलतः लोगों ने इसकी जांच की और यह सिद्ध किया कि एक नारी दो व्यक्तियों को समान रूप से प्यार नहीं कर सकती है ।" प्रत: उपर्युक्त उल्लेखों से यह स्पष्ट है कि आदर्श मार्ग एक विवाह करना ही था । ३७६ नारी के जीवन में पातिव्रत का ही सर्वाधिक महत्व है । हरिभद्र के अनुसार भी अल्पवय में नारी विधवा होने पर आजन्म तपश्चरण करती हुई धर्मसाधना करती देखी गयी है । हरिभद्र ने गुणश्री, रत्नमती और विलासवती के शील का उदात्त रूप उपस्थित कर एक विवाह का ही समर्थन किया है । नारी के दो पति होने की बात केवल अपवाद मार्ग है । ऐसे अपवाद मार्ग प्रत्येक समय में रह सकते हैं । उस नारी के प्रेम की परीक्षा भी यह सिद्ध करती हैं कि समाज इस प्रकार के विवाह को आशंका की दृष्टि से देखता था । परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त समाज के घटकों में मित्र, भृत्य एवं दास-दासियां भी परिगणित हैं । हरिभद्र ने समाज के उक्त घटकों पर भी यथार्थ प्रकाश डाला है । मित्र - - हरिभद्र की दृष्टि में मित्र का महत्वपूर्ण स्थान है । इनके पात्रों में कई ऐसे पात्र हैं, जो अत्यन्त विश्वसनीय मित्र कहे जा सकते हैं । सुवदन जैसे' मित्र तो समाज के लिए कलंक हैं, हरिभद्र ने प्रकारान्तर से उनकी भर्त्सना ही की है । सनत्कुमार वसुभूति को अपना प्राणप्रिय मित्र समझता है और श्रावश्यकता के समय वह सभी प्रकार से उसकी सहायता भी करता है । यान भंग हो जाने पर जब वह समुद्र तट पर पहुँचता हूँ तो "कि वा एगुदरनिवासिणा विय वसुभूइणा विउत्तस्स पार्णोह" अर्थात् सहोदर भाई के समान वसुभूति से पृथक् रहने पर इन प्राणों के धारण करने से भी क्या लाभ है ? कहकर मित्र के लिए पश्चात्ताप करता है । * लघुकथाओं में भी मित्र का महत्त्व बड़े सुन्दर ढंग से बतलाया गया है । ब्रह्मदत्तकुमार, श्रामात्यपुत्र, श्रेष्ठिपुत्र और सार्थवाह पुत्र ये चारों मित्र विदेश गये और वहां सहयोगपूर्वक चारों ने धनार्जन किया तथा राज्य भी प्राप्त किया । हरिभद्र की दृष्टि में समाज के निर्माण और विकास में मित्र का महत्वपूर्ण स्थान है। मित्र गोष्ठियां भी हुआ करती थीं और इन गोष्ठियों में नाना प्रकार से मनोरंजन तथा ज्ञानवर्द्धन होता था । इन गोष्ठियों का विवेचन हम आगे चलकर करेंगे । यहां इतना ही प्रकाश डालना आवश्यक है कि मित्र का महत्त्व वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में अत्यधिक था । समरादित्य और गुणचन्द्र की मित्रगोष्ठी किस समाज प्रेमी को प्राकृष्ट न करेगी । भृत्य और दास-दासियां -- राजा-महाराजाओंों के प्रतिरिक्त साधारण व्यक्ति भी दासदास रखते थे । कुछ दास तो पुस्तंनी थे । उनको सन्तान भी उसी परिवार में दास का कार्य करती थी । नन्दक' इसी प्रकार का दास है । इसका परिवार धन के घर में पुस्तैनी दास था । मंगल भी पुस्तंनी दास परिवार का व्यक्ति है । दासियों में मदनले खा' श्रादि के नाम आते हैं। ये दासियां परिवार का एक अनिवार्य अंग थीं । दासी के साथ इन्हें नायिका की सखियां भी कहा जा सकता है । सच्चे हृदय १ - - उप० गा० ६४, पृ० ६५ । २- स०पृ० ५५६-५६० । ३ - वही, पृ० ४०४ । ४ --- जहा बम्मदत्तो कुमारो कुमारायच्च, द०हा० पृ० २१४ । ५-- स० पृ० २३८ । ६-- वही, पृ० ८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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