Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

Previous | Next

Page 419
________________ ३८६ चेलगृह'--यह वस्त्र तानकर बनाया जाता है । हरिभद्र के वर्णन से लगता है कि तम्बू या डेरे के समान चेलगृह रहे होंगे। निवास --साधारण कोटि के उटज के अर्थ में आया है । अरण्य निवासी पल्लीपति भिल्ल प्रादि निवास बनाकर रहते थे। __हरिभद्र ने एक कथा में (स०प० २२०) लिखा है कि गरीब लोग सर्दी से कांपते हुए दांत कटकटाते रात्रि व्यतीत करते थे। इनके घरों में बन कंडे जलाये जाते थे जिनसे कटुधूम निकलता था। ये टूटे फूटे घरों में निवास करते थे, जिनकी फटी दरारों से सांप निकला करते थे । धनी लोग अच्छे घरों में रहते थे। कुंकुम-कस्तूरी का उपयोग करते थे। वाहन वाहनों में हाथी, घोड़े, रथ, बैलगाड़ी प्रसिद्ध थे। जल यात्रा के लिए नाव और बड़े-बड़े जहाजी बड़े चलते थे। धनी व्यक्ति हाथी, घोड़े और रथ की सवारी करते थे। बैलगाड़ी जनसाधारण की सवारी थी। पालकी का भी उल्लेख पाया है, यह बहुत सम्मान की सवारी समझी जाती थी और रत्नशोभित कंचन के दण्डवाली होती थी। रथ मण्डियों से सजाया जाता था, क्षुद्र घण्टिकाएं बांधी जाती थी, रत्नों की मालाएं और मोतियों के हार लटकाये जाते थे। रथ के बीच में माणिक्य सिंहासन रहता था, जिस पर राजकुमार या धनिक लोग बैठते थे । पालतू पशु और पक्षी हरिभद्र ने पालतू पशुओं में हाथी (स०पृ० १००), घोड़े (स० पृ० १६), वृषभ (स०पू० ५१०), खर, करभ, गो, महिष, उष्ट्र (स० पू० ३४८) और पाखे टक शुनक-कुत्ते (स०पू० १२०) के नाम गिनाये हैं। हाथियों की जातिविशेष का उल्लेख करते हुए हरिभद्र ने लिखा है-- "भद्द-मन्दवंसपमुहा य गयविसे सा" (स०पृ० १००)--भद्र और मन्दवंश जाति के हाथी श्रेष्ठ समझे जाते थे। घोड़ों की जाति का उल्लेख करते हुए बताया कि "तुरक्क-वल्हीक कम्बोय-वज्जराइनासकलियाई घोडयवन्द्राई (स०पू० १००-१६) अर्थात् तुरुष्क, वाल्हीक, कम्बोज, बज्जर आदि जाति के घोड़े प्रमुख थे। पक्षियों में शुक, सारिका, भवन-कलहंस (स०प०८२), राजहंस, राजहंसिनी (स० पृ० ८७), कुक्कुट, (स०पू०३०१) मयूर, (स०प० ३०७), कोकिला (स० पृ० ३६८) और सारस (स० पृ० ४६८) के नाम पाये है। मृग, हिरण और हरिणी के पालने की भी (स०प० ८२) प्रथा प्रचलित थी। क्रीडा-विनोद मनोविनोद के लिए विविध नाटक, छन्द, नृत्य (स०प० १६), प्रादि के साथ गेंद खेलना, चित्रकारी करना, गीत गाना (स०पृ० २१), पत्रच्छेद करना (स०पृ० ८२), १--स० पृ० ६५६ । २-वही, पृ० ६५७ । ३--वही, पृ० ६३९ । ४---यही पृ० ८८१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462