Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

Previous | Next

Page 410
________________ से नायिका की सहायता करना, गाढ़े समय में उनका साथ देना, हर सम्भव उपाय द्वारा सुख पहुँचाना इनका जीवन लक्ष्य था। हरिभद्र ने समाज के लिए सहयोगी के रूप में भृत्य और दास-दासियों का उल्लेख किया है। भृत्य से तात्पर्य उन नौकरों से है, जो कुछ समय के लिए वेतन या भोजन आदि पर नियत किये जाते थे । समाज में नारी का स्थान हरिभद्र ने समाज में नारी के स्थान का चित्रण कई रूपों में किया है । यथा कन्या, पत्नी, माता, विधवा, साध्वी और वेश्या । कन्या--भारतीय समाज में कन्या यद्यपि बराबर से ही प्रादृत, लालित और पालित होती आयी है, तथापि उसका जन्म संपूर्ण परिवार को गंभीर बना देता है । उसकी पवित्रता और सुरक्षा के सम्बन्ध में अत्यन्त ऊंचे भाव एवं उसके विबाह और भावी जीवन की चिता । समस्त कुटम्ब और विशेषतः माता-पिता त्रस्त रहते पाये है। कन्या किसी अनागत वर से नेय और एक धरोहर है। राज घरानों में भी कन्या की सुरक्षा का सभी प्रकार का प्रबन्ध रहता था। हरिभद्र के निर्देश से ज्ञात होता है कि कन्यान्तःपुर पृथक् रहता था और उसमें बृद्ध प्रतिहारी रहा करता था। कन्या के पालन-पोषण और शिक्षा में कोई कमी नहीं रक्खी जाती थी। उसकी शिक्षादीक्षा का परा प्रबन्ध रहता था। पढ़ने-लिखने के अतिरिक्त चित्रकला और संगीत कला की पूरी शिक्षा कन्याओं को दी जाती थी। कुसुमावली चित्र और संगीत कला के अतिरिक्त काव्यरचना भी जानती थी। उसने सिंह कुमार के पास विरहविधुर हंसिनी के चित्र के साथ एक हंसपदिका भी लिखकर भेजी थी। इस हंसपदिका से स्पष्ट ज्ञात होता है कि वह काव्यरचना में भी निपुण थी। हरिभद्र ने इस बात का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है कि कन्या को शिक्षा किस स्थान पर दी जाती थी। पुरुषों के समान सामूहिक रूप से कन्याओं के लिए भी उच्च शिक्षा का प्रबन्ध था। ऐसा लगता है कि वे व्यक्तिगत रूप से शिक्षा प्राप्त करती थीं। माता-पिता अपनी कन्या को शिक्षित बनाने की पूरी चेष्टा करते थे। शिक्षा प्राप्त न करने से स्त्रियों का सदाचार भी लुप्त हो जाता था तथा वे नाना प्रकार के आडम्बरों की शिकार बन जाती थीं। हरिभद्र ने एक स्थान पर लिखा है-- "अणहीयसत्थो ईइसो चेव इत्थियायणो होइ" अर्थात् प्रशिक्षित स्त्रियों की कुमार्ग में प्रवृत्ति होती है। जो शिक्षित और सुसंस्कृत हैं, वे सदा अपनी कुल-मर्यादा का ध्यान रखकर प्रात्मकल्याण के मार्ग में चलती हैं। हरिभद्र की प्राकृत कथानों के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि कन्या शिक्षा में निम्न विषय अवश्य परिगणित किये जाते थे: (१) लिखना-पढ़ना--भाषा-ज्ञान और लिपि-ज्ञान । (२) शास्त्रज्ञान--लौकिक और आध्यात्मिक नियमों को शिक्षा देने वाले शास्त्रों का अध्ययन । (३) संगीत कला--गायन और वादन का यथार्थ परिज्ञान। वीणावादन इस कला में मुख्य रूप से परिगणित था। (४) चित्रकला--नारियां चित्रकला में अत्यन्त प्रवीण होती थीं। (५) गृह-संचालन कला--घर-गृहस्थी के संचालन में दक्षता भी कन्या प्राप्त करतो थीं। १--स०, पृ० ८७-८८ । २--वही, पृ० ६२२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462