Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 413
________________ ३८० के नारी पात्र पर्दा करते हए नहीं दिखलाई पड़ते हैं। अतः स्पष्ट है कि हरिभद्र ने पदो प्रथा का समर्थन नहीं किया है। पूर्ववर्ती साहित्य के अवलोकन से स्पष्ट है कि उनक समय में अवगुंठन का रिवाज प्रचलित था। "स्वप्नवासवदत्तम्" नाटक में पद्मावती अपने विवाह के बाद पर्दा रखना आरम्भ करती है। मच्छकटिकनाटक में वसन्तसेना भद्र महिला बनने के उपरान्त अवगुंठन रखने लगती है। कुसुमावली का अवगुंठन इसी प्रथा का परिणाम है। भोजन-पान हरिभद्र ने भोजन-पान के सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला है। हरिभद्र की प्राकृत कथाओं से अवगत होता है कि उस समय तीन प्रकार का भोजन प्रचलित था :-- (१) अन्नाहार। (२) फलाहार। (३) मांसाहार। अन्नाहार में घृतनिमित्त पक्वान्न , सत्तू २, कुम्माष और मोदक के नाम पाये है। घृतनिमित्त पक्वान्न पाथेय के रूप में ले जाया जाता था। यह घी में तलकर चीनी या गुड़ से लिप्त किया जाता था। सत्तू प्रसिद्ध है, अनाज को भूनकर बनाया जाता था। कुम्माष-कुल्माष एक विशेष प्रकार का खाद्य था, जो चना, जल और नमक के संयोग से बनता था। इस खाद्य का राजस्थान और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में आज भी प्रचार रस अाजकल थोपा कहते हैं। तेल भी इसमें पड़ता था। मोदक भारत प्रिय और प्रचलित मिष्टान्न रहा है। यह कई प्रकार से बनाया जाता था। फलाहार में नारंग ५, कदली, कंकोलफल, जम्बीर, और पनस ' के नाम आये हैं। जहां अन्नादि पदार्थ खाने को नहीं मिलते थे, वहां फलों का प्रयोग होता था। मांसाहार उस समय कई प्रकार का प्रचलित था । मत्स्य, शकर ११, प्रजा और महिष १२ मांस विशेष रूप से व्यवहार में लाया जाता था। चतुर्थभव की अवान्तर कथा में महिष के भटित्रक का उल्लेख पाया है। यह जीवित पशु को निर्दयतापूर्वक भूनकर बनाया जाता था। इसमें त्रिकटक २, हींग और लवण"आदि मसाले डाले जाते थे । हरिभद्र १--स०, पृ० १२१ । २--उप० मुलदेवकथा। ३- वही। ४--स०, पृ० १२६ । ५-- वही, पृ० २५७ । ६-- वही, पृ० ९७२। ७--वही, पृ० ८८। ८--वही, पृ० ६७२। ६--वही, पृ. ९७२। १० --वही स०, ३१३ । ११----वही, पृ० १७४ । १२--वही, पृ० ३१६ । १३- वही, पृ० ३१६ । १४-- वही १५--वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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