Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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(११) परोपकार और सहयोग का विस्तार ।
(१२) निष्काम - निदान रहित कर्म करने और अनुकम्पापूर्वक मानवजाति की सेवा करने की नीति |
(१३) निम्न से निम्न वर्ग के व्यक्ति की मानवता, गौरव और उसकी प्रतिष्ठा के प्रति आदरभाव रखना ।
(१४) विचारों की समन्वयता -- विचार सहिष्णु बन कर अन्य व्यक्ति के विचारों को आदर देना ।
(१५) लोक परम्पराओं का निर्वाह करते हुए अखिल मानवता के विस्तृत हितों की रक्षा करना ।
(१६) विरोधी के विचार सुनकर घबड़ाना नहीं, अपने विचारों के समान अन्य के विचारों का भी आदर करना तथा अपने विचारों पर भी तीब्र आलोचनात्मक दृष्टि रखना ।
( १७ ) अहंभाव का त्याग कर प्रलोभनों को जीतना ।
(१८) सहानुभूति गुण का आविर्भाव कर मानवमात्र की यथाशक्ति सेवा करना ।
हरिभद्र ने अपनी लघुकथाओं में भी सर्वत्र पारिवारिक आदर्श, विवाह, धर्मस्थान, धर्मचर्चाएं, टोटके, शकुन (टोटेम्स एंड मिथ्स), अन्धविश्वास परम्पराएं, असामान्य चरित्र, विभिन्न रीति-रिवाज और आचार के विभिन्न रूपों का उल्लेख किया है । भावशुद्धि के लिये उद्धृत साधुशीर्षक कथा (द० हा० पृ० ७३ ) में समाज दर्शन के अन्तर्गत विभिन्न टोटेम्स के आविर्भाव पर संकेत किया है । सर्प को मारने का निषेध किया, यतः वह उस राजा को नागकुल से आकर पुत्र रूप में उत्पन्न होगा । समय पाकर राजा को पुत्र उत्पन्न हुआ और पुत्र का नाम नागदत्त रखा गया । भविष्य में उसके परिवार या वंश का कोई भी व्यक्ति सर्प को नहीं मारेगा और सभी उसकी पूजा आदर से करेंगे । यह सर्प उनकी जाति के लिये एक टोटेम हो गया । एक स्तम्भ प्रासाद (द० हा० पृ० ८१ ) में एक ऐसे अन्धविश्वास का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार वृक्ष, नदी, पहाड़, झरना आदि में किसी प्रेतात्मा का निवास माना जाता है । इस कथा में वृक्षवासी व्यन्तर को प्रकट होने की प्रार्थना की गयी है । हिंगुशिव (द० हा० पृ० ८७) में एक अविचारणीय परम्परा का उल्लेख है । अधिकांश लोग अन्ध हो परम्परा का अनुसरण करते हैं । इसी परम्परा के अनुसरण के कारण भारत में तैंतीस करोड़ देवताओं की मान्यता प्रचलित है ।
सहानुभूति शीर्षक लघुकथा (द० हा० पृ० ११४ ) में परिवार सम्बन्धी सामाजिक दर्शन - संकेत मिलता है । समाजशास्त्री मार्ग के अनुसार परिवार के संगठन में स्त्री जाति का महत्वपूर्ण स्थान है । परिवार की केन्द्रबिन्दु वही है । यदि स्त्री नैतिक आचरण न करे तो सम्पूर्ण पारिवारिक संघटन विघटित हो जाता है । प्रस्तुत कथा में उल्लिखित वणिक भार्या का आचरण परिवार गठन के लिए उपयक्त नहीं है । सुबन्धु विद्रोह शीर्षक (द० हा० पृ० १८२ ) में सम्पत्ति वितरण के नियम का प्रतिपादन किया गया है । समाज में आर्थिक संगठन के अन्तर्गत कुछ ऐसे अलिखित सामाजिक विधान होते हैं, जिनके अनुसार सम्पत्ति का विभाजन हुआ करता है । जब परिवार का मुखिया सम्पत्ति की देखभाल नहीं कर पाता, तो वह अपनी सारी सम्पत्ति को अपने परिवार के सदस्यों में विभक्त कर देता है । प्रशासन सम्बन्धी नियम प्रचलित होने के पहले ही यह सामाजिक विधान वर्तमान था । समाजशास्त्रियों ने इस सामाजिक नियम को ला ग्राफ इनहेरीटेन्स कहा हुँ । उचित उपाय शीर्षक (द० हा० पृ० ८० ) में पड़ोस
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