Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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के सिद्धांत का उल्लेख किया गया है। जो व्यक्ति पड़ोसी को कष्ट देकर स्वयं सुखी होना चाहता है, वह कभी भी सुख-शांति नहीं प्राप्त कर सकता है । इस कथा में गान्धर्व और वणिकपुत्र के झगड़े का उल्लेख किया गया है । हरिभद्र भी पड़ोस के सिद्धान्त से पूर्ण परिचित थे। पड़ोसी या निकटवर्ती व्यक्ति की असुविधाओं का ध्यान रखना प्रत्येक समझदार व्यक्ति का कर्तव्य है। चारमित्र शीर्षक (द० हा० पृ० २१४) में सहयोग और सहकारिता पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है । इन लघुकथाओं में सामाजिक परिवर्तन की दिशाओं का संकेत भी मिलता है। ग्राम्य संस्कृति और नागरिक संस्कृति में अभिव्यक्त भौगोलिक और जैविक स्थिति का प्रांचलिक और प्राकृतिक चित्रण भी इन कथाओं में वर्तमान है। व्यक्ति की सामाजिक धारणाएं, जो जाति, देश, समाज, सामाजिक उद्देश्य आदि के प्रति होती हैं, उनका निदर्शन भी इन कथाओं में विद्यमान
सामाजिक संबंधों की स्थिति का विश्लेषण हरिभद्र ने समराइच्चकहा में विस्तारपूर्वक किया है। शकुन, अपशकुन, अन्धविश्वास और परम्पराएं, मन्त्र-तन्त्र पर विश्वास प्रादि का निरूपण भी विस्तारपूर्वक पाया जाता है । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह तथा इन व्रतों में होने वाले दोषों का निरूपण प्राचार की दष्टि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। पर नारी के प्रति सनत्कुमार का यह कथन--"न य विहाय चलणबन्दणं" (स० पृ० ३८६) समाज का उदात्त और भव्यरूप उपस्थित करता है । __ समाजतत्त्व के अतिरिक्त हरिभद्र की कथाओं में भावपक्ष के अन्तर्गत चरित्र विश्लेषण आदि भी ग्रहण किये जा सकते हैं, पर इनका निरूपण पहले किया जा चुका है।
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