Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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से समराइच्चकहा के पात्र व्यापार के लिए आया-जाया करते थे । ये बन्दरगाह हैंताम्रलिप्त और वैजयन्ती ।
ताम्रलिप्त या ताम्रलिप्ति - - ताम्रलिप्त से सिंहल और चीन जहाज आते-जाते थे । महाभारत से पता चलता है कि यह समुद्र के किनारे और कलिंग के बगल में अवस्थित था । महावंश में आये हुए वर्णन से ज्ञात होता है कि ई० पू० ३०७ से पहले ही ताम्रलिप्त नगर समुद्र तटवर्ती एक बन्दरगाह के रूप में प्रसिद्ध था । उस समय सिंहल के राजा ने इस बन्दरगाह में जहाज पर आरोहण किया था । महाभारत भीष्मपर्व ( ६ / ७६ ) में भी इसका विस्तृत उल्लेख उपलब्ध हूँ । वर्तमान में यह बंगाल का प्रसिद्ध स्थान तामलुक माना जाता है । बंगाल के मिदिनापुर जिले में रूप नारायण के पश्चिमी तट पर स्थित है । दिग्विजय प्रकाश नामक संस्कृत भौगोलिक ग्रन्थ में एक उपाख्यान आया है, जिससे अवगत होता है कि एक ब्राह्मण के अभिशाप से ताम्रलिप्त का वैभव नष्ट हो गया था ।
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वैजयन्ती -- यह बहुत प्रसिद्ध बन्दरगाह था । हमारा अनुमान है कि इसका सम्बन्ध बंगाल की खाड़ी से रहा है । आजकल यह बाला कहा जाता है । कुछ लोग इसे मंसूर का दक्षिण-पश्चिमी भाग बतलाते है "। परन्तु यह हमें उचित नहीं प्रतीत होता है । हरिभद्र के वर्णन से यह ज्ञात होता है कि व जयन्ती उस समय का चालू बन्दरगाह था । जहाज और नावे सदा आती-जाती थीं । पूर्व समुद्र के तटपर स्थित था ।
यह
( उ ) अरण्य और वृक्ष
भौगोलिक दृष्टि से अरण्यों का महत्व सदा से रहा है । विविध प्रकार की भूमि और जलवायु के कारण विविध प्रकार को बनस्पतियां यहां उत्पन्न होती हैं । हिमालय के निचले जंगल और विन्ध्यमेखला के दक्षिण-पूर्व भाग के जंगल पर्याप्त प्रसिद्ध हैं । हमें समराइच्चकहा में शाश्वत हरित् और शुष्क इन दोनों प्रकार के वनों का उल्लेख मिलता है । कादम्बरी और पद्मावती अटवी का हरिभद्र ने सजीव वर्णन किया है ।
कादम्बरी हमारा अनुमान है कि यह अटवी आधुनिक बिहार के मुंगेर जिले में रही होगी । इसका स्थान खड़गपुर की पर्वतमाला के निकट था, जहां से क्यूल और मान नदियां निकलती हैं । खगड़िया, वाद्यमती और चन्दा आदि नदियों में भी प्राचीन समय में नाव चलती थीं। इस पहाड़ी भूभाग में इमली और कदम्ब के वृक्ष बहुतायत से पाये जाते हैं । हरिभद्र ने बताया है कि इस जंगल में वृषभ, मृग, महिष, शार्दूल, कोल आदि भयंकर पशु रहते थे । हाथियों के समूह के गण्डस्थल को मृगराज विदीर्ण करता रहता था, जिसमें रक्तरंजित मुक्ताएं बिखरी पड़ी रहती थीं । यह अटवी श्राम्र, चन्दन, कदम्ब श्रादि 'उन्नत वृक्षों से श्राच्छादित थीं ।
१ - - तामलित्ति गच्छस्सइ स० पृ० २४१ ।
२ -- महावंश का ११वां और १६वां परिच्छेद ।
३ - दिग्विजय प्रकाश, १०१, १०३ ।
४ -- समहिलि पुव्वसमुद्दत निविट्ठ वैजयन्ति नाम नयरिसं० पृ० ५३१ । ५- कनिंघम्स ऐं न्शियेंट जागरफी आफ इण्डिया, पृ० ७४४ ।
६——समराइच्चकहा पृ० ५१०, ६७३, तथा इसका निर्देश विविधतीर्थं पृ० ६५ ।
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