Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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चैत्य मन्दिर थे । गुणसिल चंत्य में भगवान महावीर अनेक बार भाकर ठहरे थे । पहाड़ियों घिरे रहने के कारण यह नगर गिरिब्रज के नाम से भी प्रख्यात था। राजगृह व्यापार का बड़ा केन्द्र था। यहां से तक्षशिला, प्रतिष्ठान, कपिलवस्तु, कुसीनगर श्रादि भारत के प्रसिद्ध नगरों को जाने के मार्ग बने हुए थे । विविध तीर्थकल्प में राजगृह में छत्तीस हजार घरों के होने का उल्लेख है । वर्तमान में राजगृह पटना जिले का राजगिर ही है ।
हरिभद्र की भौगोलिक सामग्री पर विचार कर लेने के उपरान्त उनके द्वारा निरूपित राजनैतिक, सामाजिक, श्रार्थिक और धार्मिक श्रवस्थानों पर विचार करना प्रत्यावश्यक है । अतः सर्वप्रथम हरिभद्र की प्राकृत कथाओं में निरूपित राजनीति पर विचार किया जाता हं ।
राजतंत्र और शासन व्यवस्था
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हरिभद्र ने राजा, महाराजा, सामन्त और महासामन्त इन चार शब्दों का प्रयोग राज्य शासक के लिये किया है । हरिभद्र के वर्णनों से ऐसा ज्ञात होता है कि महाराज एक विस्तृत भूखंड का स्वामी होता था । यह भूखंड एक नगर या जनपद से ज्यादा विस्तृत रहता था । हरिभद्र ने महाराजा की विशेषताओं का वर्णन करते हुए लिखा है - "अनेक सामन्तमंडल जिसके चरणों में नमस्कार करते थे, जिसने अनेक मंडलाधिप को जीत लिया था, अनेक देश जिसके अधीन थे । दसों दिशाओं में जो विख्यात निर्मल यशवाला था और धर्म, अर्थ तथा काम पुरुषार्थ के सम्पादन में जो श्रविरोधरूप से संलग्न रहता था, वह महाराज था। महाराज के लिये एक विशेषण सम्पूर्ण मंडलाधिपति' भी दिया गया है, इस विशेषण से भी ज्ञात होता है कि महाराज सार्वभौमिक सम्राट् के रूप में व्यवहृत हुआ है । सकल सामन्त स्वामी भी महाराज को कहा जाता था।
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राजा -- राजा नगराधिपति के रूप में प्रयुक्त हुप्रा हैं । हरिभद्र ने इसका वर्णन करते हुए बताया है कि " धर्माधर्म व्यवस्थापूर्वक राज्य पालन करने में तत्पर, सभी के मन को श्रानन्दित करने वाला, सामन्तमंडल में अनुरक्त, दीन, अनाथ, दुःखी के उपकार में रत, यथोचित गुणयुक्त राजा होता था"। कौशाम्बी नरेश इसी प्रकार का राजा था ।
सामन्त-- सामन्त राजा के पास दुर्ग और सेना रहती थी। कभी-कभी वह श्रहंकारवश हो अपने स्वामी के साथ बगावत कर बैठता था । जयपुर के राजा सिंह कुमार के प्रति दुर्मति नाम के पड़ोसी प्राविक सामन्तराज की बगावत का उल्लेख हरिभद्र ने विस्तार से किया है" । शुक्रनीति के अनुसार जिसकी वार्षिक प्राय एक लाख चांदी के कार्षापण होती थी, वह सामन्त कहलाता था । हरिभद्र के वर्णन से इतना स्पष्ट है कि सामन्त के पास अपनी सेना रहती थी, वह अपने ढंग से अपने राज्य की व्यवस्था करता था और अपने स्वामी को कर देता था ।
१ - - अणे यसामन्त पणिवइयचलणजुयलो, स० पृ० १५ । -- वही, पृ० ६ ।
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३ - वही, पृ० ३६५ ।
४ -- धमाधम्म ववत्थपरिपालणरयो, वही, पृ० १४२ । -- वही, पृ० ३६२ ।
६ -- सामन्तराया दुग्गभूमिबलगव्विनो - वही, पृ० १४७ ।
७-- स० पृ० १४७-१४८ ।
८- - हर्ष ० सं० पु० २१६ |
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