Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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महासामन्त--जो अनेक सामन्तों का अधिपति, राजा का अत्यन्त विश्वसनीय और राजा के समान वैभववाला होता था, वह महासामन्त कहलाता था। हरिभद्र ने लक्ष्मीकांत नामक महासामन्त का सजीव चित्रण किया है। इसकी कन्या कुसुमावली का विवाह जयपुर नरेश के पुत्र सिंहकुमार के साथ हुआ था। महासामन्त के अधिकार में सभी प्रकार की सेना, कोष एवं अन्य प्रकार के सभी स्वत्व रहते थे। प्रधान सामन्त का उल्लेख भी उपलब्ध होता है । प्रधान सामन्त राजा को अधिक प्रिय और निकट होता था।
राजा का निर्वाचन और उत्तराधिकार हरिभद्र के अनुसार राज्य वंश परम्परा से ही प्राप्त होता है । पिता चतुर्थ अवस्था में आत्मशोधन के लिये वन में चला जाता था और राज्याधिकार अपने ज्येष्ठ पुत्र को देता था। द्वितीय पुत्र युवराज बनाया जाता था। कभी-कभी ऐसा भी होता था कि पुत्र ही युवक होने पर युवराज बनाया जाता था। राज्य सदा पटरानी के पुत्र को ही मिलता था। पुत्र के अभाव में राजा का निर्वाचन पंचदेवाधिवासित अथवा प्रश्वाधिवासित द्वारा सम्पन्न होता था। हरिभद्र ने एक लघुकथा में अश्वाधिवासन का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एक राजा पुत्रहीन मर गया था। अतः राजा के निर्वाचन के लिये अभिमन्त्रित कर अश्व को छोड़ा गया। यह अश्व उद्यान में वृक्ष के नीचे दूर देश से हए राजकमार के पास जाकर हींसने लगा। नगरवासियों और मंत्रियों ने उस अजनबी व्यक्ति को राजा बना दिया। इसी प्रकार वेन्यातट के राजा की मृत्यु होने पर हाथी, घोड़ा, छत्र, चमरयुगल और कलश इन पांचों को दिव्याधिवासित कर राजा निर्वाचित करने के लिये इन्हें छोड़ा गया। जिस एक ही व्यक्ति के पास जाकर हाथी गर्जन करता, घोड़ा हिनहिन.ता, चमर युगल स्वयमेव झूलने लगते, छत्र स्वयं ही जाकर शिर के ऊपर सरक जाता और कलश स्वयं अभिषेक करता, वही व्यक्ति राजा बना दिया जाता था। वन्यातट में मलदेव नामक व्यक्ति को इसी प्रकार राजा बनाया गया।
राजा बनने पर राज्याभिषेक सम्पन्न होता था। हरिभद्र ने राज्याभिषेक का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है (स० पृ० १५२।) __ राज्याभिषेक करने के लिये मांगलिक द्रव्य मंगाये जाते थे। इन मांगलिक द्रव्यों में दो मछलियां. पर्ण कलश. श्वेतपष्प. महापदम, सिद्धार्था--पीली सरसों,पथ्वी-पिण्ड,वषभ, दधिपूर्णवर्तन, महारत्न, गोरोचन, सिंहचर्म, श्वेतछत्र, भद्रासन, चामर, दूर्वा, स्वच्छमदिरा, महाध्वज, गजमद, धान्य और दुकुल प्रधान थे। राज्याभिषेक के समय बड़ा उत्सव सम्पन्न किया जाता था। नगर सजाया जाता था और याचकों को यथेच्छदान दिया जाता था।
उत्तराधिकार की प्राप्ति के लिये झगड़े भी होते थे। बड़े भाई के राजा बनने पर छोटा भाई बगावत भी करता था। यतः हरिभद्र ने राज्य का वर्णन करते हुए कहा है कि यह राज्य मांस के टुकड़े के समान है, जिसके लिये कुटुम्बी रूपी काक आपस में
१--स० १० ७६--८३ ।। २--पुरे अपुत्तो राया मप्र , आसो आहिवासियो, जीए रुक्खछायाए रायपुत्तो रिणवण्णो
... ... . तो आसेण तस्सोवरि ठाइऊण हिंसित, राया य अभिसत्तो, अणेगारिण सयसहस्सारिण जायारिण-द० हा० पृ० २१६ । ३--नरनाहो दिव्वई अहिवासिज्जंति वो पंच-उप० पृ० २६ । ४--स० प० ४८१ । ५---महामिसभूयं खु, स० पू० ४८४ ।
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