Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

Previous | Next

Page 397
________________ ३६४ राजपुरोहित--हरिभद्र ने राजपुरोहित के गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है कि पुरोहित सकल जन के द्वारा सम्मानित, धर्मशास्त्र का पाठी, लोकव्यवहार प्रवीण, नीतिकुशल, वाग्मी, अल्पारम्भपरिग्रहवाला और मंत्र-तंत्र प्रादि सकल शास्त्रों का वेत्ता होता था। कभी-कभी राजपुरोहित से दूतकार्य भी लिया जाता था। राज्य के उपद्रव अथवा राजा की व्याधियों के शमन के लिये पुरोहित यज्ञानुष्ठान भी सम्पन्न करता था। शासन--शासन का कार्य राजा स्वयं करता था। प्रारम्भ में अपराधों की जांच मंत्री करते थे, पश्चात् राजा को मुकदमे सौंपे जाते थे। न्यायाधीश भी होते थे, जिनका कार्य प्रारम्भिक जांच करना था। राजा का गुप्तचर विभाग भी था, जो चोरी, डकैती प्रादि के अपराधों की जानकारी प्राप्त करता था। अपराधी की प्राकृति, भयविह्वलता, कातरता, प्रादि से अपराधों की जानकारी की जाती थी। हरिभद्र की कथाओं के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि चोरी का बहुत प्रचार था। राजा के कोषागार से चोरी हो जाया करती थी। हरिभद्र ने बताया है कि कौशाम्बी नरेश स्वयं मुकदमों की जांच अनेक प्रकार से करता था। मात्र प्रश्न पूछकर ही निर्णय नहीं करता था, बल्कि संभव सभी उपायों के द्वारा प्रमाण एकत्र करता था। धनश्री के मुकदमे में राजा ने धनश्री के पिता के पास भी पत्र भेजा था और वहां से उत्तर प्राने पर दंड की व्यवस्था की थी। पेचीदे मामलों के लिये दिव्य सहारे ग्रहण किये जाते थे। राजा पंचकुल सहित जगात के माल का निरीक्षण करता था तथा कर का निर्धारण भी। नगर के प्रमुख व्यक्तियों में जव विवाद उत्पन्न हो जाता था, तो नगर के प्रधान व्यक्ति मिलकर उस विवाद का निर्णय करते थे और निर्णय दोनों ही पक्षों को मान्य होता था । - दण्डपाशिक 'माजकल के एस०पी० जैसा होता था। उसे अधिकार भी एस० पी० के प्राप्त थे। सामान्य अपराधियों को दंड व्यवस्था वह अकेला ही करता था। मकदम वंडपाशिक के बाद मंत्रिमंडल में उपस्थित होते थे, पश्चात् राजा उनका अवलोकन करता था"। युवराज भी राज्य व्यवस्था के चलाने में पूर्ण सहयोग देता था। विरोधी राजा का सामना करने के लिये प्रायः युवराज सेना लेकर जाता था। राजा अमात्य, दंडपाशिक, पुरोहित प्रादि के अतिरिक्त निम्न अधिकारियों को नियुक्त करता था। १--स० पृ० १०। २--वही, पृ० ३८ । ३--वही, पृ २१ । ४--वही, पृ० २५६ । ५--वही, प० २०८ । ६--वही, पृ० ३६० । ७--वही, पृ० २५७ । ८--वही, पृ० ३६२ । E--वही, पृ० ५६० । १०--वही, पृ० ५६१ । ११--वही, पृ० ४९८ । १२--वही, पृ. ८४६ । १३--वही, पृ० ८४६-५० । १४---वह, पृ. ७७३ । १५- वही, पृ. ८९८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462