Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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नवम प्रकरण
हरिभद्र की प्राकृत कथाओं का सांस्कृतिक विश्लेषण
कथात त्व और काव्यशास्त्रीय विश्लेषण के अनन्तर हरिभद्र की प्राकृत कथाओं का सांस्कृतिक विश्लेषण करना परम आवश्यक है। कथाकार अपने समय का सजग प्रतिनिधि होता है, अतः उसके समय की संस्कृति की अमिट छाप उसकी कथाओं में रहती है । हरिभद्र ने समराइच्चकहा, धूर्ताख्यान एवं अन्य लघुकथाओं में अपने युग की संस्कृति का सजीव एवं स्पष्ट चित्रांकन किया है। ___ हरिभद्र को प्राकृत कथानों में निरूपित संस्कृति के विवेचन के पूर्व उनके द्वारा प्रतिपादित भौगोलिक सीमा को अवगत कर लेना अधिक सुविधाजनक होगा । यह सत्य है कि हरिभद्र का कथा साहित्य भारत के भौगोलिक ज्ञान का भण्डार है। इसमें प्रासाम, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान एवं सौराष्ट्र के अनेक महत्त्वपूर्ण स्थानों के निर्देश के अतिरिक्त चीन. सिंहल और कटावदीप ग्राटि के भी सस्पष्ट उ
उपलब्ध हैं। अतः हरिभद्र की भौगोलिक सीमा के निर्धारण एवं विश्लेषण द्वारा यह सहज में जाना जा सकेगा कि हरिभद्र की कथाओं में वर्णित संस्कृति अमुक स्थानीय हैं ।
हरिभद्र जैन सम्प्रदाय के आचार्य है, अतः इनके कथाक्षेत्र की भौगोलिक सीमा का प्राधार जैन साहित्य है । समराइच्चकहा के पात्रों का सम्बन्ध जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत एवं विदेह क्षेत्रों से है । यद्यपि कथाओं में आये हुए नगरों के नामों में दो एक को छोड़ शेष सभी नाम भारतवर्ष के भीतर ही मिल जाते हैं, तो भी जैन पौराणिक मान्यता के अनुसार यह कहा जा सकता है कि हरिभद्र ने जितने विस्तृत भूभाग को अपनाया है, वह आज की ज्ञात दुनिया से बहुत बड़ा है । सभी महादेश इनकी सीमा के अन्तर्गत समाविष्ट है।
पौराणिक मान्यता को छोड़ आज के भूगोल को दृष्टि में रखकर हरिभद्र की भारत सम्बन्धी भौगोलिक सीमा पूर्व में कामरूप -प्रासाम, पश्चिम में हस्तिनापुर, दक्षिण में सौराष्ट्र और उत्तर में हिमालय तक मानी जा सकती है । इस सीमा के बाहर स्वर्ण द्वीप-सुमात्रा, चीन, सिंहल और महाकटाहद्वीप भी आते हैं। हरिभद्र ने इतने विस्तृत भूभाग से अपनी कथाओं के पात्रों का सम्बन्ध जोड़ा है । अतः हरिभद्र की प्राकृत कथानों की भौगोलिक सामग्री का वर्गीकरण निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है:
(१) प्राकृतिक भूगोल। (२) राजनीतिक भूगोल।
१--प्राकृतिक भूगोल प्रकृति से जिन वस्तुओं की रचना हुई है, और जिनके निर्माण या विकास में मनुष्य का कोई हाथ नहीं है, वे भौगोलिक वस्तुएं प्राकृतिक भूगोल का वर्ण्य विषय हैं। हरिभद्र की सामग्री के अनुसार इसके निम्न भेद हैं :--
(अ) द्वीप और क्षेत्र। (प्रा) पर्वत । (इ) नदियां। (ई) बन्दरगाह । (उ) अरण्य और वृक्ष ।
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