Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
२७७
का परिचय एक सिद्धसेन नामक मांत्रिक से होता है । यह मान्त्रिक इनको मंत्र का चमत्कार दिखलाने के लिए नगर से बाहर एक मंडल बनाता है और सर्षप द्वारा देवी का आह्वान करता है । कुछ ही क्षण में देवी उपस्थित होकर अपना दर्शन देती है । सनत्कुमार मन्त्र चमत्कार को देखकर आश्चर्य चकित हो जाता है ।
मिथिलाधिपति विजयधर्म राजा की पत्नी चन्द्रधर्मा को किसी मान्त्रिक ने मंत्र - सिद्धि के निमित्त छः महीने के लिए अपहरण किया था । इसी प्रकार उत्पला नामक परिव्राजिका न बन्धु सुन्दरी के पति को, जिसका अनुराग मदिरावती से था, उच्चाटन प्रयोग द्वारा उसे मदिरावती से पृथक किया। हरिभद्र ने इस कथा अभिप्राय के प्रयोग द्वारा निम्न कार्यों की सिद्धि की है
---
( १ ) कथा को नयी दिशा की ओर मोड़ ।
(२) आश्चर्य और कुतूहल का सृजन ।
(३) रुकते हुए कथा प्रवाह को गतिशील बनाना ।
( ४ ) फलागम की ओर बढ़ती हुई कथा में संघर्ष और तनाव उत्पन्न करना ।
३-- पट चमत्कार
सनत्कुमार को मनोरथदत्त से "नयन मोहन" नाम का एक चमत्कारपूर्ण वस्त्र प्राप्त होता है। इस वस्त्र में यह विशेषता है कि वस्त्र से आच्छादित व्यक्ति को कोई आंखों से देख नहीं सकता है । वस्त्र का प्रयोग करते ही व्यक्ति अदृश्य हो जाता है । सनत्कुमार न े समुद्र तट पर विलासवती को यह वस्त्र देकर अदृश्य किया था, किंतु विद्याधर न मान्त्रिक शक्ति से उसे देख लिया और उसका अपहरण किया। हरिभद्र ने चमत्कारी पट का प्रयोग कथानक रूढ़ि के रूप में किया है। इसके प्रयोग द्वारा निम्न कथा तथ्य निष्पन्न हुए हैं :
---
(१) सरल मार्ग से घटित होने वाली घटनाओं को वक्र बनाना । (२) कथारस को घनीभूत करना ।
(३) नायक में आत्मविश्वास उत्पन्न कर उसे साहसिक कार्य करने की ओर प्रवृत्त करना ।
४ - गुटिका और अंजन प्रयोग द्वारा अदृश्य होना
कथा में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए कथाकार इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग करते हैं। छठवें भव की कथा में इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग हरिभद्र ने किया है । चण्डरुद्र नामक चोर के पास "पर दृष्टि मोहिनी” नाम की चौर गुटिका थी, जिसे जल में रगड़कर आंख में लगा लेने से व्यक्ति अन्य लोगों को तो देख सकता था, पर अन्य व्यक्ति उसे नहीं देख सकते थे। लक्ष्मी से जल लेकर चण्डरुद्र ने इस गुटिका का प्रयोग किया था और धरण को चोरी के अपराध में फंसा दिया था।
१ - स०, पृ० ४०१-४०२ ।
२ -- वही, पृ० ३ - - वही, पृ० ४ - वही, पृ०
Jain Education International
७८२ । ८२८ ॥
५२१ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org