Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
२६५
कारण-कार्य सम्बन्ध, और कथानकों को तीव्र बनाने में इन सूक्ति वाक्यों का अतुलनीय महत्व है । विचार और सिद्धान्तों की बड़ी से बड़ी बातें सूक्ति वाक्यों द्वारा प्रभावशाली और महनीय हो जाती हैं । आपसी वार्तालाप या गोष्ठी वार्त्तालापों का महत्व तो महावरों और सूक्ति वाक्यों के द्वारा ही प्रकट होता हैं । कथन या संवाद में प्रभाव का अंकन वर्तुल उक्तियों या सूक्तियों के द्वारा ही संभव है ।
हरिभद्र की प्राकृत कथाओं की भाषा जैन महाराष्ट्री है। इसमें "य" श्रति सर्वत्र वर्तमान है । गद्य में शौरसेनी का प्रभाव भी है। देशी शब्दों का प्रयोग बहुलता से पाया जाता है । यहां कुछ देशी शब्दों की तालिका दी जाती है । यद्यपि इन शब्दों में कुछ शब्दों की व्युत्पत्ति संस्कृत से स्थापित की जा सकता है, पर मूलतः इन शब्दों को
कहा गया है।
૪૪
(१) श्रन्नदुवारं ( अदिन्त- दुवारं ) २६२ ( २ ) डाल (३) अणक्खो (४) प्रणोरपार
(५) प्रत्याइ
(६) अन्दुयाश्रो
(७) श्रप्पुष्णं
(८) अम्मा
(2) यडण
(१०) अवड
(११) श्रवयच्छइ (१२) श्रडियत्तिय
(१३) आढत्त (१४) श्रसगलिस्रो
(१५) प्राल
(१६) आवील
( १७ ) इक्कण
(१८) मुक्कोट्ठियं (१६) उग्घाय० (२०) उड्डिया (२१) उत्थरियं
(२२) उप्पंक
(२३) उप्प हड
(२४) उप्फाल
(२५) उल्लुकं (२६) उवरिहुतो (२७) उहारा ( २८ ) ऊमिणिया
Jain Education International
श्रदत्तद्वार -- बिना दरवाजा बन्द किये
बलात् ०
० १।१६
४५८ श्रपवाद ७० प्रतिविस्तृत
४५ सभाभवन
६४७ श्रृंखला
७०४ पूर्ण दे० १।२०
८१ मां दे० १५
६५१
कुलटा - - देशी ना० १।१८
१३८
कुंद्रा दे० १।२०
१३७ फैलाना या प्रसारित करना
६५६ सुभट आरब्ध
३६
४९१,८३१ आक्रान्त, प्रादुर्भाव
५२७ मिथ्या, असत् दे० १।७३ अलपरुत्रो
३८३ शिरोभूषण या माला
६५ चोर दे० १८०
७७८ उद्वेष्टित
५३०
७१५
५७६
५३१
६३८ उद्भट दे० ११११६
समूह दे० १।१२६
वस्त्रविशेष
उठा हुआ
समूह राशि दे० १।१३०
७८५ सूचक दे० १।६० दुर्जन स्तब्ध दे० १६२ त्रुटित
३२०
५६२ उर्ध्वाभिमुख
३२३ जन्तुविशेष ६४ प्रोंछिता--पोंछना
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org