Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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कहता हैं कि मैंने एक दिन उस मंत्रज्ञ से चमत्कार दिखलाने की इच्छा व्यक्त की । वह सन्ध्याकाल के उपरान्त सर्षपमंडल बनाकर मेरे साथ प्रेत बन में पहुँचा। वहां उसने एक मंडल बनाया और अग्नि प्रज्ज्वलित की। उसने मन्त्र जाप आरम्भ किया । थोड़े समय के अनन्तर वहां एक अप्रतिम सुन्दरी यक्ष कन्या प्रादुर्भूत हुई, जो गले में परिजात पुष्पों की माला पहने थी । उसने प्राते ही कहा- मुझे बुलाने का क्या कारण हैं ? मन्त्रज्ञ ने उत्तर दिया -- मेरा यह प्रिय मित्र चमत्कार देखना चाहता है । अतः इसे दिव्य दर्शन द ेकर चमत्कृत करें । उस यक्षकन्या ने अपने अलौकिक दर्शन द्वारा चमत्कृत किया तथा नयनमोहन नामक पटरत्न को देखकर वह तिरोहित हो गयी ।
इसी प्रकार विद्याधर के विद्या प्रयोग से विलासवती का अजगर द्वारा भक्षण और चित्र मयूर द्वारा हार का भक्षण ( ६२६-६२७), यक्षिणी का मनुष्य स्त्री रूप धारण कर धोखा देना ( ८२३ - ८२४), उत्पला नामक परिव्राजिका का उच्चाटन प्रयोग (८२८) श्रादि स्थलों में अद्भुत रस का सुन्दर परिपाक हुआ हैं । अद्भुत रस में हरिभद्र ने लोकोतरता का अच्छा समावेश किया है । विस्मय या अद्भुत की सहज प्रवृत्ति जिज्ञासा हँ ।
पद्मावती अटवी और कादम्बरी अटवी के चित्रण में कवि ने भयानक रस का सुन्दर परिपाक किया है। यहां के खूंखार जानवर और शून्यशान एकान्तमय संचार का बहुत बड़ा हेतु है ।
२व्यंग्य की स्थिति --
हरिभद्र ने जिस प्रकार रसानुभूति के लिये समराइच्चकहा का सृजन किया है, उसी प्रकार व्यंग्य का यथार्थ रूप प्रदर्शित करने के लिये धूर्त्ताख्यान का । सार्वजनिक जड़ता, अज्ञानता अथवा पापों का उपहास और भर्त्सना के साथ विरोध करने के लिये व्यंग्य का प्रयोग किया है । एक स्थान पर बताया गया है कि व्यंग्य का प्रयोग कवियों ने पाप, जड़ता, शिष्टता और कुरीति को प्रकाश में लाने, उनकी निन्दा और उपहास करने के लिये किया हैं । कुरीति और अनाचार के मूलोच्छेद के लिये व्यंग्य से बढ़ कर दूसरा कोई अस्त्र नहीं है ।
शिपले ने अपने शब्दकोष में लिखा है कि व्यंग्य मानवी दुर्बलताओं की निन्दापूर्ण कटु आलोचना है । इसका उद्देश्य हैं प्रचार और सौन्दर्य के भाव का उद्रेक कर सुधार लाना । afa श्रन्य उपायों से भी सामाजिक दोषों का निराकरण करते हैं, परन्तु व्यंग्य में निराकरण करने का स्वर और टेकनिक कुछ भिन्न है ।
चैम्बर्स एनसाइक्लोपीडिया में बताया है कि जब सार्वजनिक भर्त्सना के भाव में कल्पना, बुद्धिविलास और झिड़की के भाव मिल जाते हैं, तब वहां व्यंग्य उत्पन्न होता है । "किसी भी प्रकार का सामाजिक जीवन व्यंग्य का उपयुक्त क्षेत्र बन सकता है । जब स्वाभाविकता अस्वाभाविकता का परिहास करती है, तब व्यंग्य की स्थिति उत्पन्न होती है । व्यंग्य दोषों का परिमार्जन कर सुधार और शोधन करता है । व्यंग्य से कटता नहीं बढ़ती है, बल्कि समाज या व्यक्ति का परिष्कार होता है । व्यंग्य गत्यात्मक और उपदेशात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता हैं।
१ - स०, पृ० ४०१-४०२ ।
२- देखें ए न्यू इंगलिश डिक्शनरी ऑफ हिस्टोरिकल प्रिन्सिपुल्स, भाग ८, पृ० ११६ | ३ -- डिक्शनरी आफ वर्ल्ड लिटरेरी टर्म्स, पृ० ५०२ । ४ -- चैम्बर्स एनसा० नवीन सं० जि० १२ ।
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