Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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अर्थ--प्रथम चरण के प्रारम्भ में जहां छः मात्रा, अनन्तर दो चतुष्कल, इसके पश्चात् पुनः दो चतुष्कल और अन्त में छः मात्राएं हों, वह द्विपदी छन्द होता है। अभिप्राय यह है कि द्विपदी छन्द के प्रत्येक चरण में २८ मात्राएँ होती है और यह दो चरणों का ही छन्द है। दो चरण रहने के कारण ही इसका नाम द्विपदी पड़ा है। यथा
अहिणवन हनिब्भरुक्कण्ठियनिरुपच्छायवयणिया ।
सरसमुणालवलयगासम्मि वि सइ मन्दाहिलासिया ॥--स० द्वि० भ० पृ० ८६ इस उदाहरण के प्रारम्भ में "अहिणवने" में छः मात्राएं, "हनिब्भ" में चार मात्राएं, "रुक्कं" में चार, "ण्ठियनिरु" में चार, “पच्छा" में चार और “यवयणिया" में छः मात्राएं हैं। समस्त चरण में कुल अट्ठाइस मात्राएं हैं। इसी प्रकार दूसरे चरण के प्रारम्भ में छः मात्राएं, मध्य में पांच बार चार मात्राएं और अन्त में एक दीर्घ है, इस प्रकार कुल २८ मात्राएं हैं।
दो द्विपदी छन्दों के ही प्रयोग पाये जाते हैं। १। प्रमाणिका
गाथा और द्विपदी मात्रिक छन्दों के अलावा प्रमाणिका वणिक छन्द भी समराइच्चकहा में प्रयुक्त है। इसकी परिभाषा निम्न प्रकार बतलायी गयी है :--
लहु गुरू निरन्तरा पमाणिवा अट्ठक्खरा । अर्थ--एक लघु के बाद क्रमशः एक-एक गुरु हो, वह पाठ प्रक्षर का छन्द प्रमाणिका है। यथा--
पहाणकायसंगया सुयन्धगन्धगन्धिया अवायमल्लमण्डिया पइण्णहारचन्दिमा ॥ लसन्तहेमसुत्तया फुरन्तप्राउहप्पहा ॥
चलन्तकरणकुण्डलां जलन्तसीसभूसणा ॥ इस प्रकार हरिभद्र ने छन्दों के प्रयोग द्वारा अपने पद्यों को मनोरम बनाया है। २। उद्देश्य
· कथा में उद्देश्य वह तत्त्व है, जिसकी मूल प्रेरणा से कथा में कलात्मक प्रयत्न, हस्तलाघव और विधानात्मक कुशलता का सन्निवेश किया जाता है। यह समस्त कथा का वह अन्तिम लक्ष्य है, जिसकी प्राप्ति के लिए कथाकार अपनी कथा में विविध प्रयोग करता है । समाज या व्यक्ति की नाना परिस्थितियां, समस्याएं और उन समस्याओं के समाधान आदि कथा के उद्देश्य बनते हैं तथा इसी उद्देश्य के भावविन्दु पर कथा का कथानक, चरित्र और शैली की अवतारणा होती है। उद्देश्य की सिद्धि के लिए कथाकार कथा के रूपविधान में नाना प्रकार के चमत्कार, हस्तलाघव और परिवेशों का सृजन करता है।
कथा के चरम उद्देश्य में किसी खास सिद्धांत की स्थापना, मानवता और मानव मल्यों की व्याख्या, मनुष्य के शाश्वत भावों, अनुभूतियों और समस्याओं के समाधान निहित रहते है। यह सत्य है कि किसी विशेष उद्देश्य के धरातल पर ही पूरी कथा
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