Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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( १६३) विडिया (१६४) वित्थक्क ( १६५) विलिश्रो
( १६६) विसद्धन्त
(१६७) वुक्करियं (१६८) वण्णे
(१६९) वेणियं ०
(१७०) वेल्लहल
( १७१) वोल्लाह ( १७२ ) संज्जति
( १७३ ) संतिय ( १७४) संदामियं
(१७५) सच्चह (१७६) समाजिय ( १७७) समाजिय
(१७८) सचराहं (१७९ ) सरिया
(१८०) साहइ
(१८१) साहारो
(१८२) सुक्कतद
(१८३ ) सुरिल (१८४) सेडिया
(१८५) सेलग
(१८६) सोलतगो
(१८७) हक्खुत्त
(१८८) हत्यिहार
(१८६ ) हन्दि (१६०) हलबोल
(१९१) हलहलच (१९२) हल्लफ्फलय (१९९३) हुलिय
३००
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६५ अंगूठी
१४७,५६६,७७१
५३२,६१७
आक्रमण
लज्जा दे० ७।६५
७०३
पतन पाइ० ल० ८१०
६६६
शब्दितम्
६५६ भीत दे० ७६४
८६४ वचनीय दे० ७।७५
८६१ कोमल दे० ७६६
२१०
सलोयत्रक
७४८ उत्क्षिप्त, उत्पाटित, पाइ० ल० १४३ ।
७७५ युद्ध
१५८
हन्त, पाइ० ल० ९६५
७२
आवाज दे० ८।६४
८६१ कौतुक दे० ८७४
७३३
शीघ्रता, हड़बड़
१३६
शीघ्र दे० ८५
इस प्रकार हरिभद्र ने सूक्ति, देशी शब्द, लाक्षणिक और व्यंजक पदों के प्रयोग द्वारा अपनी शैली को उदात्त और गरिमापूर्ण बनाया है। अपने विचारों को प्रभावपूर्ण रीति से अभिव्यक्त करना और उन विचारों से पाठकों को प्रभावित करना हरिभद्र की अपनी विशेषता है । संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि हरिभद्र की शैली में
१०२ श्रश्व
७७२ तैयारी
११५ सम्बन्धी
३८५ बद्ध
६४ समान, सदृश दे० ८ २६४ म्यान से निकलना
३८३ भुक्त
७२,७०१ एकाएक, शीघ्र दे० ८।११
६५ माला
१०८ कहना
५१७ उपकार या सहारा
३१०
अगरु
६२३ श्वसुर
२४३ सफेद मिट्टी
७०३ भाला दे० ८।५७
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