Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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५--चमत्कारपूर्ण मणियों के प्रयोग
मणि, मंत्र-तंत्र का प्रचार प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में रहा है। चन्द्रकान्ता, सूर्यकान्ता, चिन्तामणि आदि मणियाँ अनेक प्रकार के इष्ट कार्यों की सिद्धि करने वाली होती है। इनके प्रयोग से रोग, शोक, दारिद्रय आदि क्षणभर में विलीन हो जाते हैं। आज भी मणियों को मुद्रिका में जड़वाकर लोग धारण करते हैं। मणियों के प्रयोग की रूढ़ि भी कथाकारों के लिए प्रिय रही है। कथासरित्सागर में भी इस रूढ़ि का प्रयोग हुआ है। हरिभद्र ने इस रूढ़ि का प्रयोग सप्तम भव की कथा में किया है। समरकेतु अत्यधिक बीमार है, उसकी स्थिति मरने की है। यहां आरोग्य मणि का प्रयोग कर उसे स्वस्थ किया जाता है। इस कथानक रूढ़ि का व्यवहार निम्न प्रयोजनों की सिद्धि के लिए किया गया है:--
(१) रुकती हुई कथा को आगे बढ़ाने के लिए। (२) कथा प्रवाह को तीव्र बनाने के लिए। (३) कथानक को चमत्कृत बनाने के लिए।
६-मृतक का जीवित होना
माल
मंत्र-तंत्र के प्रयोग द्वारा मृतक व्यक्ति को जीवित करने का विश्वास पुराणकाल में प्रचलित था। मध्ययुग में भी यह विश्वास कार्य करता था। हरिभद्र ने इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग चतुर्थ भव की कथा में किया है। चाण्डाल धन को फांसी पर लटकाने ले जा रहा है। श्मशानभूमि में पहुंचकर वह उसकी हत्या करना चाहता है, पर न
कौन-सी ऐसी आन्तरिक प्रेरणा है, जिसके कारण वह ऐसा नहीं कर पा रहा है। इसी द्वन्द्व की स्थिति में एक घोषणा सुनाई पड़ती है कि श्रावस्ती नरेश के बड़े पुत्र सुमंगल की सर्प के काटने से मृत्यु हो गयी है। जो इसे जीवित कर देगा, उसे मुंहमांगा पुरस्कार मिलेगा। इस घोषणा को सुनकर धन चाण्डाल से कहता है कि मैं मृत पुत्र को जीवित कर सकता हूं। फलतः दोनों उक्त घटनास्थल पर पहुंचते हैं। धन गारुड-मंत्र के प्रयोग द्वारा सुमंगल को जीवित
( जीवित कर देता है। इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग हरिभद्र ने निम्न उद्देश्यों की सिद्धि के लिए किया है --
(१) अन्त होते हुए नायक की रक्षा के लिए। (२) अवरुद्ध होते हुए कथानक को झटके के साथ एकाएक आगे बढ़ाने के
लिए। (३) नयी दिशा की ओर कथा को मोड़ने के लिए। (४) नायक को प्रज्ञाशील दिखलाकर उसे निर्दोष सिद्ध करने के लिए। (५) रहस्य और आश्चर्य की सृष्टि के लिए। ७--विद्या या जादू के प्रयोग द्वारा असंभव कार्य-सिद्धि
भारतवर्ष जादू का देश रहा है। प्राचीन काल से ही जादू और विद्याओं के चमत्कार दिखलाये जाते रहे हैं। हरिभद्र ने इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग एक लघुकथा में किया
१--स०, पृ० ६५१-६५२। २--वही, पृ० २६३-२६४ ।
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