Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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के समय साक्षात्कार होता है। दोनों ही एक-दूसरे को आत्मसमर्पण कर देते हैं । यह प्रेम विवाह में परिणत हो जाता है। इसी प्रकार सनत्कुमार और विलासवती के प्रेम का आरम्भ भी होता है। ये दोनों प्रेमी-प्रेमिका अनेक प्रकार के कष्ट सहन करने के उपरान्त मिलते हैं । इनके मिलन और विछुड़न व्यापार भी पृथक-पृथक कथानक रूढ़ि को प्राप्त होते हैं। इस कथानक रूढ़ि द्वारा कथाकार ने कथा में विभिन्न प्रकार की मोड़ें उत्पन्न की हैं।
(२) घोड़ े का मार्ग भूलकर किसी विचित्र स्थान में पहुंचना ।
इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग दो प्रकार से किया गया है। घोड़ा नायक को भगाकर निर्जन भूमि में किसी प्रिया से मिलाता है अथवा किसी त्यागी - व्रती मुनि से । हरिभद्र की कथाओं में दोनों ही प्रकार से इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग पाया जाता है। मुनि या साधु से मिलाने पर नायक अपने विगत शुभाशुभ को जानकर व्रत धारण करता है । समराइच्चकहा की प्रायः सभी कथाओं में उक्त प्रकार के कथा अभिप्राय का प्रयोग किसी-न-किसी रूप में पाया जाता है ।
(३) नायिका के अनुकूल न बनने पर नायक द्वारा उसकी हत्या का
प्रयास ।
रुद्रदेव सोमा को धर्माराधिका और विषयों से विरक्त जानकर भीतर-ही-भीतर बहुत रुष्ट हुआ। वह सोचने लगा कि जबतक यह धर्म का त्याग नहीं करेगी, सांसारिक विषयों के सेवन करने में उत्साहित नहीं होगी। अतः पहले उसने सोमा को धर्म छोड़ देन े के लिए समझाया और जब न मानी तो सर्प द्वारा डंसवा कर उसे मार डालना चाहा। इस कथानक रूढ़ि द्वारा कथा में चमत्कार उत्पन्न किया गया है ।
(४) अभीष्ट सिद्धि के लिए नायिका का नायक के प्रति क्रुद्ध होना
सत्याग्रह करना, हठ करना और रूठकर कोप भवनों में शयन करना यह नारी का स्वभाव है । जब वह सरलतापूर्वक किसी कार्य को नहीं कर पाती है, तो हठ या जिद्द द्वारा पूरा करती है । कथाकारों के लिए यह एक कथानक रूढ़ि बन गयी है । हरिभद्र ने इस रूढ़ि का प्रयोग द्वितीय भव की कथा में किया है । जालिनी अपने पति से जिद्द करते हुए कहती है कि इस शिखिकुमार को घर से न निकालोगे तो मैं जल भी ग्रहण न करूंगी। अपने प्राण यों ही त्याग दूंगी। वह दुराग्रह द्वारा अपने पति ब्रह्मदत्त को शिखिकुमार के त्याग कर देने के लिए लाचार कर देती है । अपने पिता की इस दुर्गति को देखकर शिखिकुमार स्वयं घर से चला जाता है । कथा को अभीष्ट दिशा में ले जाने के लिए ही इस अभिप्राय का प्रयोग किया है ।
(५) पूर्व स्नेहानुरागवश नायिका की प्राप्ति और विपत्ति
प्रेम क्षेत्र बहुत विस्तृत है। नारी पूर्व स्नेहानुराग के कारण जिसे चाहती है, उसीको प्राप्त करने का प्रयास करती है । वह प्राप्त भी हो जाता है । पर कथासूत्र में यहाँ एकाध गांठ ऐसी लग जाती है, जिससे पुनः वियोग और विछोह का अवसर आता हूँ । नायक मित्र या अन्य सहयोगियों की सहायता लेकर कार्य संलग्न हो जाता है और
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