Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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(२) भविष्य सूचक शुभ शकुन
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"भविष्य सूचक शुभ शकुन" कथानक रूढ़ि का प्रयोग समराइच्चकहा में कई स्थानों पर हुआ है । द्वितीय भव की अवान्तर कथा में चन्द्रकुमार और चन्द्रकान्ता खल नायक की दुष्टता तथा दस्युओं के कारण एक कुएं में गिर जाते हैं । उस कुएं में पहले नायिका गिरती है, पश्चात् खल नायक द्वारा चन्द्रकुमार भी डाल दिया जाता है। दोनों का श्राकस्मिक मिलन होता है । चन्द्रकुमार के पास पाथेय था, जिससे कुछ काल तक जीवन-यापन हो जाता है । अब उन्हें इस बात की चिन्ता उत्पन्न होती हैं कि किस प्रकार जीवन रह सकेगा । इस अन्धकूप से निस्तार होगा भी या नहीं ? इस चिन्ता के कारण वे दोनों ही परेशान हैं । इसी समय शुभ शकुन घटित होते हैं । चन्द्रकान्ता का वामनेत्र और चन्द्रकुमार का दाहिना नेत्र स्फुरित होने लगता है । वे दोनों इस शुभ शकुन को जानकर धैर्य धारण करते हैं और उन्हें यह विश्वास हो जाता है कि इस अन्धकूप से हमारा श्रवश्य निस्तार होगा । कुछ समय के बाद शकुन का फल यथार्थ घटित होता है और रत्नपुर निवासी सार्थवाह का निजी व्यक्ति वहां जल के लिए आता है और उन दोनों का उद्धार कर देता है । यहां पर इस कथानक रूढ़ि के प्रयोग द्वारा कथाकार ने कथा को गतिविधि को बहुत ही प्रवीणता के साथ आगे बढ़ाया है ।
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चतुर्थ भव की कथा में यशोधर अपना आत्मवृत्तान्त सुनाते हुए कहता है कि मेरा विवाह सम्पन्न हो रहा था। इसी समय दक्षिण क्षेत्र के स्फुरण स्वरूप शुभ शकुन के धार पर निश्चय किया कि अन्य कोई मंगल भी होने वाला है, और हुआ भी ऐसा ही । मैंने कल्याण श्रेष्ठ के भवन में एक मुनिराज के दर्शन किये, जिससे मुझे जात्यस्मरण हो गया और मैं समस्त परिग्रह का त्याग कर श्रमण बन गया। यहां पर शुभ शकुन रूप इस कथानक रूढ़ि ने कथा में गति ही उत्पन्न नहीं की है, बल्कि कथा को दूसरी दिशा में ही मोड़ दिया है । विषयों को चलती हुई कथा विरक्ति की र मुड़ गई है यह कथानक रूढ़ि यहां पर कथा में नमस्कार उत्पन्न करने में भी सहायता उत्पन्न कर रही है ।
पंचम भाव की कथा में बताया गया है कि विनयन्धर जिस समय महाराज ईशानचन्द्र के द्वारा भेजा हुद्रा सनत्कुमार के पास श्राता हूँ और उससे बातचीत कर रहा था, उस समय छींक हुई। यह छींक आरोग्य, सुख और शान्ति के देने वाली थी । अतः विनयन्धर सोचने लगा कि सनत्कुमार की हत्या करना तो संभव नहीं हूँ । इनके प्राणों की रक्षा अवश्य होगी, इस बात की सूचना तो यह छींक ही दे रही है । अतएव वह बातचीत के क्रम में सनत्कुमार को धैर्य बंधाता हुआ, वहां से उनके बाहर चले जाने का परामर्श देता है । यहां पर भी शुभ शकुन रूप इस कथानक रूढ़ि ने कथा को गति प्रदान की है ।
१ --- भग० सं० स०, पृ० १२४ । २ -- वही, पृ० ३४० ।
३ - - वही, पृ० ३९२ ।
(३) भविष्य सूचक अशुभ शकुन --
शकुनों के द्वारा भविष्य के शुभाशुभ की सूचना बराबर मिलती रहती हूँ | इतिहास और पुराण के प्रादिम काल से लेकर अबतक जनसाधारण में शकुनों के सम्बन्ध में विश्वास प्रचलित हैं । भारतवर्ष में तो प्रत्यन्त प्राचीन काल से यह माना जाता रहा है
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