Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
महान् प्रतिभाशाली व्यक्ति का जन्म होता है, तो उसकी माता को स्वप्न दिखलाई पड़ता है। तीर्थ कर, चक्रवर्ती, नारायण प्रादि की माताएं तो स्वप्न देखती ही हैं, पर अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की माताएं भी स्वप्न देखती हैं। हरिभद्र ने गर्भ के समय के अतिरिक्त अन्य स्थितियों में भी स्वप्न दर्शन का उल्लेख किया है । इस कथानक अभिप्राय के द्वारा इन्होंने कथा को चमत्कृत बनाया है।
गर्भस्थ पुत्र के प्रभाव और महत्त्व की सूचना देने वाले स्वप्न समराइच्चकहा २७६, ३/१६३, ५/२६४, ६/४६४, ७६०६, ८'७३२, ९८५६ में प्राय हैं। इनमें अधिकांश स्वप्न प्रतीक है, कथा को केवल गतिमान ही नहीं बनाते हैं, बल्कि उसमें कथा रस का पूर्णतया सृजन करते हैं। श्रीकान्ता के गर्भ में गणसेन का जीव पाया। हरिभद्र ने इसके स्वप्न का बहुत सुन्दर साहित्यिक वर्णन किया है।
इस स्वप्न दर्शन में सिंह प्रतीक है, इस प्रतीक के द्वारा तीन बातों की सूचना प्राप्त होती है। सिंह के जितने विशेषण दिये गये हैं, वे भी सब सार्थक है। इन विशेषणों के द्वारा नायक की विशेषताएं प्रतीक रूप में बतलाया गया है--
(१) तेजस्वी एक छत्र सम्राट का प्रतीक, (२) पराक्रम और सहिष्णुता का प्रतीक,
(३) पुरुषार्थ द्वारा सद्गति-प्राप्ति का प्रतीक । इसी प्रकार तृतीय भव की कथा में जालिनी ने अपने उदर में स्वर्णकलश को प्रवेश करते हुए देखा, परन्तु असंतोष के कारण यह कलश भग्न होता दिखलायी पड़ा।
इस स्वप्न का फल भी श्रेष्ठ गुणशाली प्रतापी पुत्र की प्राप्ति होना है। कलश के भंग होने का अर्थ है कि माता स्वयं ही अपने पुत्र को विपन्न करना चाहती है। गर्भलाव करने का भी प्रयास करती हैं, पर सफल नहीं हो पाती। जन्म के पश्चात् शिखीकुमार को मारने का प्रयास जालिनी निरन्तर करती रहती है और अन्त में वह अपने प्रयास में सफल हो ही जाती है। यह स्वप्न केवल भविष्यसूचक ही नहीं है, अपितु इसका प्रभाव समस्त कथा पर पड़ता है।
चतुर्थ भव की कथा में श्रीदेवी का स्वप्न दर्शन, पंचम भव की कथा में लीलावतो रानी का चन्द्रमा के उदर में प्रवेश करते हुए देखने का स्वप्न, षष्ठ भव में दिव्य पद्मासन पर बैठी हुई, नानावस्त्रालंकारों से सुसज्जित, हाथ में विकसित कमल लिए हुए और दिव्य कंचन कलशों से श्वेत हाथी द्वारा अभिषेक की जाती हुई लक्ष्मी का स्वप्न, सप्तम भव की कथा में जयसुन्दरी के स्वर्ण दण्डे पर देव दूष्य की लगी हुई ध्वजा का स्वप्न, अष्टम भव की कथा में मैत्रीबल राजा की पत्नी पद्मावती ने सरोवर के उदर में प्रविष्ट करने का स्वप्न और नवम भव की कथा में उज्जैन नरेश की सुन्दरी रानी ने सूर्य को उदर में प्रविष्ट होने का स्वप्न देखा है। ये सभी स्वप्न भविष्य सूचक होने के साथ-साथ प्रत्ये क भव की कथा में गति एवं प्रभाव दोनों ही उत्पन्न करते हैं। हरिभद्र द्वारा प्रयक्त इस श्रेणी के भविष्य सचक स्वप्न इस प्रकार की कथानक रूढि हैं, जिनसे अलंकरण का कार्य भी सिद्ध होता है। नायिका जब स्वप्न देखती है, तो लेखक उस स्वप्न का साकार चित्रण करता है, जिससे यह चित्रण कथा में अलंकरण का कार्य भी सम्पन्न कर देता है। ___ इन प्रतीक स्वप्नों के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी भविष्यसूचक स्वप्न पाये है, जिनका कार्य कथा प्रवाह की एकरूपता और एकरसता को दूर कर कथा में वैविध्य और अनेकरूपता उत्पन्न करना है।
१--भग० सं० स०, पृ० ७६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org