Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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शृंगाल - "मातुल, यहां पर घूमते हुए आ गया ।"
सिंह -- " इस हाथी को किसने मारा है ?"
शृंगाल -- "व्याघ्र ने ।"
सिंह यह सोचकर कि छोटे व्यक्ति के द्वारा मारे गये शिकार को क्या खाना है, मृत हाथी को छोड़कर चला गया। इसी बीच व्याघ्र श्राया ।
व्याघ्र -- "हाथी को किसने मारा है ?"
श्रृंगाल -- “ सरकार । इस हाथी का शिकार सिंह ने किया है लिये चला गया है और मुझे यहां इसकी रक्षा के लिये छोड़ गया है ।""
।
१
व्याघ्र सिंह की बात सुनकर --बड़े का सामना कौन करे, चलता बना ।
इस प्रकार के वार्तालाप कथा को रोचक तो बनाते ही हैं, घटनाओं में चमत्कार भी उत्पन्न करते हैं ।
आपसी वार्ताओं के अतिरिक्त स्वगत भाषणों की योजना भी हरिभद्र ने की है । प्रायः प्रत्येक पात्र किसी विशेष स्थिति में पड़ चिन्तन करता है, कुछ कहता है और अपने मन तथा विचारधारा का परिचय उपस्थित कर देता है । कहीं-कहीं यह चिन्तन मन के भीतर ही रह जाता है, पर लेखक उस चिन्तन की स्पष्ट झलक उपस्थित कर देता है । पात्रों के चरित्रों और संवेदनाओं का स्वगत चिन्तनों में स्पष्ट स्वरूप उपलब्ध होता है । अधिकांश चिन्तन प्रेम, विरह, संसार की वस्तुस्थिति एवं धर्म के स्वरूप विश्लेषण के अवसर पर उत्पन्न हुए हैं। इसमें सन्देह नहीं कि अजगर द्वारा सांप, कुरर पक्षी का भक्षण करते समय सिंहकमार, बसन्तपुर से लौटते समय गुणसेन,' मंगलक के छुरी मारने पर समद्रदत्त, सनत्कुमार के रूप यौवन को देखकर जयकुमार, प्रभृति पात्रों के श्रात्मगत चिन्तन कथा स्थापत्य की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । कथा के उपकरणों में इन स्वगत चिन्तनों का भी स्थान है ।
२. शीलस्थापत्य या चरित्र-चित्रण
कथावस्तु के उपरान्त कथात्रों का प्रमुख तत्त्व चरित्र चित्रण है । यह सत्य है कि कथावस्तु के विकास में पात्रों का चरित्र ही विशेष रूप से सहायक होता है । कथा के भवन निर्माण में यदि घटनाएं ईटों का काम देती हैं, तो पात्र उन ईंटों को जोड़ने वाले सीमेंट हैं । प्रत्येक कथा में चरित्र चित्रण के द्वारा ही कथाकार अपने विचारों और सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है । पात्रों को विभिन्न परिस्थितियों में रखकर ही जीवन के संघर्ष को दिखलाने में कथाकार सफलता प्राप्त करता है । अतएव यह कहा जा सकता है कि चरित्र-चित्रण करने में वही कथाकार सफलता प्राप्त कर सकता है, जो विभिन्न वर्ग के पात्रों की स्थितियों का अवलोकन कर उन्हें अपनी कथाकृति में उसी रूप में दिखलाने में समर्थ हो सके ।
१- द० हा० पृ० २१७ ।
२ -- भग० सं० स० पृ० १५० ।
३ - वही, पृ० ४३ ।
४ -- वही, पृ० १८६ |
५ - वही, प० ३६६ ॥
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वह पानी पीने के
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