Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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में स्वाभाविक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है । वह हृदयमन्दिर में प्रतिष्ठित प्रतिमा की विकृति को अपने नेत्र देकर पूरा कर लेना चाहता है । यह नेत्रदान नेत्र-बोधि प्राप्ति का व्यंग्य है । श्रतः निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि निम्न श्रेणी और दलित वर्ग के पात्रों में विरेचन द्वारा उनके रसातल में सोये बर्बर का विशुद्धिकरण किया गया है ।
इन पुरुषपात्रों के शील में मात्र मूल बीजत्व ही नहीं है, बल्कि पल्लव, पुष्प आदि की व्यापक सफलता, प्राणहरीतिमा एवं शाखाविस्तार भी विद्यमान है | समराइच्चकहा में विविध श्रेणियों के पात्रों के संश्लिष्टशील का सप्राण चित्रण विद्यमान है ।
नारीपात्र -- पुरुषपात्रों की अपेक्षा हरिभद्र ने नारीपात्रों का चरित्र अधिक स्वाभाविक और सजीव चित्रित किया है । विभिन्न वर्ग की नारियों का मनोविज्ञान इन्हें बहुत सुन्दर है। जहां भी जिस नारी-शील को उठाया है, उसका सांगोपांग चित्रण किया है । यह सत्य है कि अवान्तर कथाएं कही गयी हैं, घटित नहीं, अतः इन कथाओं में विविध वर्ग इतने श्रधिक पात्र प्राये हैं और उनके अनेक जीवनों की कथाएं इतनी सघन हैं, जिससे इन अवान्तर या उपकथाओं में शील का समुचित विकास नहीं हो सका है । मूल कथा में आये हुए नारीपात्रों के चरित्र पूर्ण विकसित हैं । हरिभद्र के नारीपात्र मात्र मानस की उपज नहीं है, बल्कि वे इस दुनिया के दुनियावी पात्र हैं, जिनमें शील का भव्य और भव्य रूप समानतापूर्वक देखा जा सकता है । एक ओर हरिभद्र न कालिदास की इन्दुमती का विलास अपने नारीपात्रों में भरा है तो दूसरी ओर शकुन्तला और सीता का स्वाभिमान । प्रियंवदा का विनोद और अनुसूया का विवेक भी उनके स्त्रीपात्रों में देखा जा सकता है । स्त्री स्वभाव सुलभ ईर्ष्या, घृणा, कलह के प्रतिरिक्त निस्स्वार्थ प्रेम करने वाली नारियां भी हरिभद्र नारीपात्रों के अन्तर्गत देखी जा सकती हैं । नारीपात्रों के शील में गाम्भीर्य और आयाम ये दोनों गुण विद्यमान हैं । प्रायः सभी नारीपात्र प्रेमिल हैं। परन्तु उनके स्वभाव में विभिन्न विशेषताएं विद्यमान हैं । सखियां और दासियां भी अपना निजी व्यक्तित्व रखती हैं ।
पतिव्रताओं के साथ कुलटा और दुराचारिणियों के चरित्र उद्घाटन में भी हरिभद्र पूर्व सफलता प्राप्त की है । परिस्थिति और वातावरण नारी को कितना परिवर्तित कर देते हैं, यह इनके नारी शीलों से जाना जा सकेगा । समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक दोनों ही पहलुओं द्वारा नारीपात्रों का सुन्दर विश्लेषण किया गया है ।
कुसुमावली, जालिनी, घनश्री, लक्ष्मी, नयनावली, शान्तिमती, यशोधरा, अनंगवती, खण्डपाना और विलासवती इन प्रधान नारी चरित्रों के साथ सोमा, चन्द्रलेखा, मदनलेखा, नागश्री, सुमंगला, नन्दिवर्धना, श्रीमती, नर्मदादासी, चन्द्रकान्ता, नन्दयन्ती, श्रीकान्ता, लक्ष्मीमती, नन्दिमती, शुभंकरा, सुन्दरी, वसुमती, देवदत्ता, कान्तिमती, मातृपक्षा, श्रीदेवी, लीलावती और जयसुन्दरी इन सहायक स्त्री चरित्रों का भी अंकन किया गया 1
कुसुमावली का चरित्र उन भारतीय ललनानों का प्रतिनिधि चरित्र है, जो मध्य युग में विलास और कर्तव्य का अद्भुत सम्मिश्रण अपने भीतर रखती थीं । नायिका के समस्त गुण तो इसमें हैं हो, पर साथ ही, पातिव्रत और गृहसंचालन की कला से भी अभिज्ञ है । राजपरिवारों में विलास और वैभव का जोर रहने से पारिवारिक बाव के संघर्ष की घड़ियां कुसुमावली को भले ही न देखनी पड़ी हों, पर अपने पति
१ द०, हा० पृ० २०८ ।
१६ – २२ एड०
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