Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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(४) लोकमंगल ।
(५) धर्मश्रद्धा ।
(६) श्रादिममानस ।
( ७ )
रहस्य ।
(८) कुतहल ।
( 2 )
मनोरंजन |
(१०) अमानवीय तत्त्व |
( ११ ) प्राकृतिकता ।
(१२) प्रतिप्राकृतिकता ।
(१३) अन्धविश्वास ।
(१४) उपदेशात्मकता -- जीवन के कटु और मधु अनुभवों की नीतिमूलक
व्याख्या ।
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(१५) अनुश्रुतिमूलकता- -- प्रायः घटनाएँ सुनायी जाती हैं, घटित कम होती हैं-मौखिकता ।
(१६) प्रभुत तत्त्व का समावेश -- श्राश्चर्य का समावेश ।
(१७) हास्य-विनोद - कथोपकथनों या अन्य बातों में हास्य-विनोद का होना ।
(१८) पारिवारिक जीवन-चित्रण |
(१९) मिलन - बाधाएँ - नायक-नायिका के मिलन में प्रानेवाली अनेक बाधाएँ ।
( २० ) लोकमानस की तरलता ।
(२१) पूर्वजन्मों के संस्कार और फलोपभोग ।
(२२) महत्वाकांक्षात्रों की अभिव्यक्ति या साहस का निरूपण ।
(२३) जनभाषातत्त्व --- जनभाषा का प्रयोग |
(२४) सरल अभिव्यंजना |
(२५) जनमानस का प्रतिफलन ।
(२६) परम्परा की प्रक्षुण्णता ।
( १ ) प्रेम का अभिन्न पुट
हरिभद्र ने अपनी सभी प्राकृत कथाओं में प्रेम का अभिन्न पुट दिखलाया है । मानवजीवन से सम्बन्ध रखने वाली इनकी प्राकृत कथाओं में प्रेम का वर्णन विभिन्न रूपों में हुआ है। भाई और बहन के विशुद्ध प्रेम का निदर्शन समराइच्चकहा के छठवें भव में गुणश्री के साथ धनपति तथा धनावह नाम के भाइयों का मिलता है । गुणश्री विधवा हो जाने के बाद संसार त्याग कर साध्वी बन जाना चाहती है, वह अपने भाइयों से प्रदेश प्राप्त करती हैं । भाई प्रेमवश उसे घर त्याग करने की अनुमति नहीं देते हैं। वे कहते हैं -- " एत्थव ठिया जहासमीहियं कुणसु ति । तो कारावियं जिणहरं, भारविय श्रो पडिमा फूल्लबलिगन्धचन्दणाइएसु पारद्धो महावो । अर्थात् 'बहन'
१- भग० सं० स०, ० ६१४ ।
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