Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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स्वाभाविक सुन्दर हो सकते हैं ? और इनसे क्या सुख हो सकता हूँ ? श्रात्मा शरीर से भिन्न दिखलायी नहीं पड़ती, इसका उत्तर यह है कि आत्मा प्रत्यन्त सूक्ष्म, ग्ररूपी और प्रतीन्द्रिय है, अतएव दिखलायी नहीं पड़ती है'
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आचार्य विजय सिंह के उपर्युक्त कथन को सुनकर पिंगक हंसा और प्रत्युत्तर देता हुआ बोला-
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भगवन् ! आपने सब असम्बद्ध कहा है, मैं अपने कथन को सिद्ध करता हूं, सुनिये - - आपने कहा है कि पंचभूत प्रचेतन है, इनसे गमनादि की इच्छा का कारण तथा प्रत्यक्ष अनुभव में आने वाली श्रात्मा की उत्पत्ति नहीं हो सकती है, जो गुण अलगअलग वस्तुत्रों में नहीं है, वह समुदाय में भी नहीं हो सकता है, यथा बालुका से तेल, यह कथन युक्तियुक्त नहीं है । यतः सर्वथा कारण के अनुरूप ही कार्य नहीं होता
1 क्या सींग से बाण की उत्पत्ति नहीं देखी जाती हैं ? क्या अदृश्य परमाणुत्रों से उत्पन्न घट दृश्य नहीं होता है ? अतः भूतविरोधी कार्य चेतना भी है । कारण से भिन्न कार्य की उत्पत्ति मानने पर पंचभूतों से आत्मा की उत्पत्ति मानने में कौन-सी प्रसंगति श्राती है ? जो आपने यह कहा है कि इनमें से प्रत्येक चेतन है, अतः अनेक चेतना का समुदाय पुरुष सिद्ध होगा और भूतों के एकेन्द्रिय जीव होने से घटादि भी चेतन हो जायेंगे यह भी तर्कसंगत नहीं है । यतः इन भूतों का इतना सूक्ष्म परिणमन होता है, जिससे चेतनवत कार्य दिखलायी पड़ता है । ऐसी स्थिति में घटादि को चेतन मानने का प्रसंग नहीं आ सकता है। इस कथन को सुनकर प्राचार्य विजय सिंह ने उत्तर दिया
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"जो आप यह कहते हैं कि कारण से कार्य को उत्पत्ति विलक्षण होने से भूतों से श्रात्मा की उत्पत्ति देखी जाती है यथा सींग से शर की उत्पत्ति । यह कथन निराधार हैं, यतः सींग से बाण को उत्पत्ति कारण के अनुरूप ही है । सींग के रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, आदि पौद्गलिक गुण शर में भी संक्रमण करते हैं, हां सींग की अपेक्षा शर में तीक्ष्णता, घनता, स्निग्धता आदि गुण विलक्षण रहते हैं । इस विलक्षणता के कारण, कारण से कार्य को अत्यन्त भिन्न नहीं कहा जा सकता है । अदृश्य परमाणुओं से दृश्य घटादि की उत्पत्ति की बात कही गयी हैं, यह भी युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि एकान्तरूप से परमाणु दृश्य नहीं हैं । योगी उन्हें अपने ज्ञान के बल से देखता है तथा कार्य दर्शन द्वारा अनुमान से भी जाना जाता है । यह सिद्धान्त भूतों के द्वारा चेतना की उत्पत्ति में लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि चेतन अचेतन से बिल्कुल भिन्न है । यदि यह कहें कि सत्ता धर्म का संक्रमण होता है, तो यह भी उचित नहीं है । ज्ञानादि भावों से युक्त चेतन की उत्पत्ति जड़भूतों से मानना अनियामक है ।"
इस उत्तर को सुनकर पिंगक कहने लगा-
"अतीन्द्रिय जीव शरीर से भिन्न हैं, यदि यह बात ऐसी है -- तो मेरा पितामह दादा मधुपिंग अनेक प्राणियों की हिंसा में श्रासक्त था । आपके सिद्धान्त के अनुसार वह नियमतः नरक में जन्मा होगा । मेरे ऊपर उसका अत्यन्त स्नेह था और वह मुझे इस लोक में प्रकरणीय प्राचरण से रोकता था । अब वह नरक से आकर मुझे देखता क्यों नहीं है ?"
१---सं० पृ० ३। २०३-२०५ । २ -- वही, पृ० ३ । २०६ । ३. वही, पृ० ३। २०७ ।
४---वही, पृपृ ३ । २० ।
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