Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
११५
समराइच्चकहा' और लीलावईकहा' में पात्रों के प्रकारों के आधार पर दिव्य, मानुष और दिव्य मानुष ये तीन भेद कथा के किए गये हैं, जिनमें दिव्यलोक के व्यक्तियों के द्वारा कथा की घटनाएं घटती हैं अथवा जो देवी घटनाओं के द्वारा प्रभावित होते हैं । तात्पर्य यह है कि जिनमें दिव्यलोक के व्यक्तियों के क्रियाकलाप से कथानक और कथावस्तु का निर्माण होता है, वे कथाएं दिव्य कथाएं कहलाती हैं । भारतीय आख्यान साहित्य में जिस प्रकार जीव-जन्तुओं की कथाएं निहित हैं, उसी प्रकार देवों की कथाएं भी । आलोचकों ने परीकथा ( Fairy tales) -- इसी प्रकार की कथाओं को कहा है। इस प्रकार की कथाओं में घटनाओं की बहुलता और प्रधानता तो रहती है, साथ ही कथाओं में नाना प्रकार के मोड़ भी रहते हैं। मनोरंजन और कुतूहल तत्त्व की सघनता, काव्यादि के शृंगार रसों की निबद्धता एवं शैली की स्वच्छता दिव्यकथाओं के प्रमुख गुण हैं । इन कथाओं का सबसे बड़ा दोष यह है कि दिव्यलोक के पात्र इतनी ऊंचाई पर स्थित रहते हैं, जिससे पाठक उनतक नहीं पहुंच पाता और न उनके चरित्र से आलोक ही ग्रहण कर पाता है । वे पात्र श्रद्धेय होते हैं, उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न की जा सकती है, उनके भयंकर कार्यों से भयभीत हुआ जा सकता है, पर उनके साथ घुल-मिलकर पाठक नहीं रह सकता है । पात्रों की इस ऊंचाई की दूरी के कारण इन कथाओं में चित्रग्राहिणी कथा शक्ति के रहने पर भी लोकप्रियता तो प्रायः रहती हैं, पर वे हमारे लिए आदर्श नहीं होते । सामाजिक स्तर पर प्रेम और कर्त्तव्य की विवेचना का अभाव भी रहता हूँ । वर्णन कौशल और कथोपकथन की कला के प्रस्फुटित रहने पर भी स्वाभाविकता और सजीवता की कमी सर्वदा खटकती रहती है ।
मानुष - कथा में पात्र मनुष्यलोक के ही रहते हैं । उनके चरित्र में पूर्ण मानवता है । चरित्र की कमियां, उसके आदर्श एवं उत्थान-पतन की विभिन्न स्थितियां, मनोविकारों की वारीकियां और मानव की विभिन्न समस्याएं इस कोटि की कथाओं में विशेष रूप से पायी जाती हैं। वर्तमान की कहानी मनुष्यलोक के भीतर की ही है । वह दिव्यलोक या जीव-जन्तुलोक के बाहर ही रह जाती हैं। इस कथा के पात्र सजीव और जीवट होते हैं । उनके साहसिक कार्य पाठक को आश्चर्य में डालने के साथ आकर्षण और विकर्षण की स्थिति में भी ले जाते हैं । इन कथाओं का धरातल पर्याप्त विस्तृत होता हैं। इनमें विश्वव्यापक प्रभाव और रचना नै पुण्य सर्वत्र उपलब्ध होता है । इनमें कहीं कुतूहल, कहीं घटना - वं चित्र्य, कहीं हास्य-विनोद और कहीं गम्भीर उपदेश वर्त्तमान हैं ।
दिव्यमानुषी कथा बहुत सुन्दर मानी गई है । इसमें मनुष्य और देव दोनों प्रकार के पात्र रहते हैं । इस कोटि की कथा का कथाजाल बहुत ही सघन और कलात्मक होता | कौतूहल कवि न े “लीलावाईकहा" को दिव्य मानुषी कथा कहा है। उसने बताया
१ - - दिव्वं,
दिव्वमाणुसं, माणुसं च ।
तत्थ दिव्वं नाम जत्थ केवलमेव देवचरिअं वणिज्जइ ।
एमेय मुद्ध जुयई - मनोहरं पाययाए भासाए । पविरल देसि सुलक्खं कहसु कहं दिव्व माणुसियं ॥ तं तह सोऊण पुणो भणियं उव्विबिवं-बाण- हरिणच्छि । जइ एवं ता सुण्णव्व सुसंधि बंधं कहा-वत्थु ॥
-- या० सम०, पृ० २ | २-- तं जह दिव्वा तह दिव्व माणुसी माणुसी तहच्चेय -- लीला० गा० ३५ । ३ - - माणुसं तु जत्थ केवलं माणुचरियं ति - - या० सम०, पृ० २। ४ -- लीला गा० ४१ ४२, पृ० ११ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org