Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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सनत्कुमार को अपनी प्रियतमा का विरहजन्य सन्ताप क्यों सहना पड़ा, इसका रहस्य बतलाने के लिये एक सुन्दर कथा आयो है । बतलाया गया है कि काम्पिल्यनगर में रामगुप्त अपनी प्रिया हारप्रभा के साथ वसन्त-बिहार कर रहा था। इसी बीच एक हंस युगल वहां आया। मन बहलाव के लिये दम्पत्ति ने इसे पकड़ लिया और कुंकुमराग से रंजित कर छोड़ दिया। रागरंजित हो जाने के कारण वह दम्पत्ति युगल अपने को पहचान नहीं सका, फलतः विरह वेदना के कारण वे दोनों आपस में एक दूसरे के बिना तड़प-तड़प कर जान दन लग । जब उनकी विरह-वदना असह्य हो गयी और वे जीवन विसर्जन करने को तैयार हो गये तो उन्हें गृहदीपिका में छोड़ दिया गया। जल में जाते ही उनका कुंकुमराग धुलने लगा और कुछ ही दूर जाने पर, उनका रंग स्वच्छ हो गया। उन्होंने आपस में पहचान लिया और वे स्नेह से पुनः मिल गये । __ पूर्वभव की शृंखला जोड़ते हुए चित्रांगद प्राचार्य ने कहा कि तुम उसी रामगुप्त के जीव हो और विलासवती हारप्रभा का जीव है । अतः "अप्पं नियाणं महन्तो विवाोत्ति इस सिद्धांत को जीवन में अपनाकर अपने कार्य व्यवहार को सम्पन्न करना चाहिये। ___ इस कथा में चतुर्थभव की कथा की अपेक्षा प्रेम, राज्य और पारिवारिक समस्याओं का समाधान सन्दर प्रस्तत किया गया है । सनत्कमार सच्चा प्रेमी है, विलासक्ती के अतिरिक्त संसार की अन्य महिलाएं उसके लिये मां, बहन है । अनंगवती जब उसके समक्ष कुत्सित प्रस्ताव रखती है तो वह कहता है--"न य विहाय चलणवन्दणं तुह सरीरेण में उवोगों" । वह विलासवती के प्रेम से विह्वल है, उसके बिना एक क्षण भी उसे असह्य है, पर कुपथ का पथिक नहीं बनता है । सिंहलद्वीप की यात्रा करते समय यान भंग हो जाने पर वह एक पटरे के सहारे किनारे पहुंचता है और वहां अकस्मात् उसका साक्षात्कार विलासवती से हो जाता है । विलासवती के साथ कुछ ही दिन रह पाता है कि एक विद्याधर अपनी विद्यासाधना के अवसर पर उसका अपहरण कर लेता है। सनत्कुमार समझता है कि उसकी प्रियतमा को अजगर ने भक्षण किया है, अतः वह निराश हो आत्महत्या करने के लिये उद्यत हो जाता है । अन्य विद्याधर द्वारा वह उसका पता लगाता है । पुनः प्राप्ति होती हैं और प्राप्ति के पश्चात् वियोग। इस प्रकार प्राप्ति और वियोग का द्वन्द्व चलता है । इस द्वन्द्व की कड़ी निदान से मिला दी जाती
इस कथा में आदर्श और पथार्थ--दोनों प्रकार के पात्र आते हैं। वसुभूति जैसे मित्र और विजयन्धर' जैसे कृतज्ञ सेवक बहुत थोड़े लोगों को मिल पाते हैं। बालसखा मनोहरदत्त भी कम अादर्श नहीं है। उसके हदय में भी अपने मित्र सनत्कमार के प्रति अपार वात्सल्य है । विलासवती जैसी प्रेमिका भी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है ।
यथार्थ पात्रों में अनंगवतो और विजयकुमार प्रधान है। अनंगवती सौन्दर्योपासिका है, वह तितली है, जहां भी उसे पुष्परस प्राप्त होता है, वहीं बह जाती है । अभिलषित कार्य में बाधा उत्पन्न होने पर वह सिंहनी बन जाती है । झूठ बोलने और मायाचारता
१---स० पृ० ५। ४७४ । २--वही, पृ० ५। ४७४ । ३--स० पृ० ५। ३८६ । ४--वही, पृ० ५। ३७४ । ५--वही, पृ० ५। ३८७ । ६----वही, पृ० ५। ३८४ ।
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