Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
________________
१८७
चतुर्थ प्रकरण कथास्रोत और कथानक
(१) कथानक स्रोत
हरिभद्र ने अपनी कथाओं के लिए कथानक कहां से लिये है, इनके कथानकों के स्रोत स्थल कौन से हैं? यह अत्यन्त विचारणीय प्रश्न है । प्रायः प्रत्येक कथाकार अपने कथानकों के स्रोत तीन स्थलों से ग्रहण करता है:--
(१) दैनिक जीवन । (२) इतिहास।
(३) साहित्य । "दैनिक जीवन" में नाना प्रकार के व्यक्ति सम्पर्क में आते हैं, उनके नाना प्रकार के संवेग, भावनाएं और वृत्तियों के अतिरिक्त अनेक तरह की आकर्षक और कौतूहलवर्धक घटनाएं भी घटित होती है। अतः कथाकार दैनिक जीवन और जगत् में चतुर्दिक बिखरे हुए कथानकों को एकत्र कर कथा का निर्माण करता है ।
"इतिहास" के व्यापक प्रसार में अनन्त कथात्रों के लिए उपादान संचित रहते हैं। जिन्हें अतीत में रमने का अभ्यास है अथवा जो लोग स्मति या कल्पना के बल से विगत बातों को साकार बना सकते हैं, उनके लिए इतिहास में कथा निर्माण के लिए प्रचुर सामग्री वर्तमान रहती है। ___ "साहित्य" तो स्वयं विशाल महावन है । इसमें सभी प्रकार के जीव-जन्तु और वृक्षों क समान विभिन्न स्वभाव, प्रकृति के पात्र, उनके आचार-विचार, विभिन्न मनोदशाएं, चरित्र की प्रवृत्तियां एवं ऐसे हृदयस्पर्शी और हृदय-द्रावक प्रसंग मिल जाते हैं, जिनके प्राधार को लेकर कुशल कथाकार कथा का भव्य-भवन निर्माण करता है ।
हरिभद्र ने अपनी प्राकृत कथानों के सृजन में अपने से पूर्ववर्ती सभी परम्पराओं से कुछ-न-कुछ सामग्री ग्रहण की है। युगगुरु के रूप में पर्यटन-जन्य भारत-व्यापी अनुभव प्राप्त कर कथाओं में विभिन्न देशों के प्राचार-विचार और रीति-रिवाजों को स्थान दिया है। शंकर, कुमारिल, दिनाग और धर्मकीति के दार्शनिक विचारों का प्रभाव भी हरिभद्र पर कम नहीं है । अतः यह मानना पड़ेगा कि हरिभद्र ने अपनी कथाओं के स्रोत मात्र प्र कृत साहित्य से ही ग्रहण नहीं किये है, किन्तु संस्कृत-साहित्य के विपुल और समृद्ध भंडार से भी सहायता ग्रहण की है। कथा-स्रोतों के अन्वेषण के लिए निम्नांकित परम्पराओं का अवलम्बन करना आवश्यक है। इन प्राधार-ग्रंथों से कथानक सूत्रों के अलावा अनेक कल्पनाएं, वर्णन और प्रसंग भी ग्रहण किये गये हैं : ....
(१) पूर्ववर्ती प्राकृत साहित्य (२) महाभारत और पुराण । (३) जातक कथाएं। (४) गुणाढ्य की वृहत्कथा । (५) पंचतंत्र । (६) प्रकरण ग्रंथ और श्रीहर्ष के नाटक । (७) बंडी, सुबन्धु और बाण के कथग्रंथ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org