Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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है कि प्राकृत कथाओं में ऐतिहय श्राभास एक स्थापत्य बन गया है । इसका व्यवहार ज्ञात या अज्ञात रूप से अधिकांश कथाग्रंथों में किया गया है । टीका-कथाओं में इतिहास के ऐसे कई सूत्र उपलब्ध होते हैं, जो कथाों के साथ सुन्दर और प्रामाणिक इतिहास की सामग्री प्रस्तुत करते हैं ।
१५ । रोमान्स की योजना -- उच्चवर्ग की मर्यादाओं, मूल्यों, आश्चर्यों और प्रवृत्तियों से रोमान्स का सम्बन्ध रहता है । प्राकृत कथाओं के स्थापत्य में रोमान्स योजना का तात्पर्य यह हैं कि कथाएं काव्य के उपकरणों के सहारे अपने स्वरूप को प्रकट करती हुई आश्चर्य का सृजन करती हैं । काव्य के क्षेत्र में जब कथा साग्रह प्रवेश कर, वहां के तत्त्वों को अनुरूप बनाकर उन्हें अपनी सेवा में नियोजित करती है, तो कथा में रोमांस की नींव पड़ती है । कथा की जटिलता और देश-काल का प्रयोग भी रोमांस के अन्तर्गत है । इस स्थापत्य में पात्रों की बहुलता और अनेक कथाओं का सम्मिलन श्रावश्यक है । कवित्वपूर्ण और भावपूर्ण वातावरण भी इस स्थापत्य के चिन्ह हैं । वीरों की प्रलंकृत साज-सज्जा, रणक्षेत्र प्रयाण की तथा युद्ध झंकार की विस्तृत विवृत्ति रहती है । इस स्थापत्य में नायक उच्चवंश राजा अथवा धर्मात्मा व्यक्ति होता है । नायिका सुन्दरता की देवी - - देखने वालों के हृदय में शौर्यभाव को जाग्रत कराने वाली रहती है । पात्र किसी महत्वपूर्ण वस्तु की खोज में रहते हैं, वीरव्रती होते हैं, विपन्नों, विशेषतः नारियों का उद्धार करना एवं प्रेम की कठिन परीक्षा में अपने प्रतिद्वन्द्वियों को मात करना उनका व्रत होता है। क्रीड़ा, समारोह, रणप्रयास, श्मशानयात्रा के उद्देश्य, धार्मिक युद्ध, विरति के अनेक साधनों के जमघट रहते हैं, परन्तु इन सब के बीच में एक सुन्दरी कन्या प्रतिष्ठित होती है, यही रोमांस का उपकरण है । प्राकृत में लीलावई कहा में रोमांस की सुन्दर योजना है । कुवलयमाला में रोमांस का मिश्रित रूप है । रयण-से हरनिव कहा में रोमांस को सफल योजना हँ ।
रोमांस की योजना रहने से कथानों में नीरसता नहीं श्राने पाती है । कथाएं सरस और हृदयग्राहय रहती हैं । उपदेशतत्त्व पाठक के ऊपर सवारी नहीं करता, बल्कि वह उसका सहयोगी बन जाता है ।
१६ । सिद्ध प्रतीकों का प्रयोग और नये प्रतीकों का निर्माण --- प्राकृत कथाकारों ने कथानों में परम्परा से प्राप्त प्रतीकों का प्रयोग तो किया ही है, साथ ही नये प्रतीक भी गढ़े हैं । प्रतीकों का प्रयोग कथाकारों ने निम्न कार्यों की सिद्धि के लिये किया है :
( १ ) विश्राम
हेतु - - कथा का जटिल घटनातंत्र पाठकों को प्रयास उत्पन्न करता है । अतः लेखक प्रतीकों की योजना द्वारा पाठक को विश्राम देता है, उसकी मानसिक श्रान्ति का अपहरण करता है ।
( २ ) कला की प्रमुख विशेषता है-- प्रकट को पिहित करना। कलाकार, चाहे वह काव्य का रचयिता हो, चाहे कथा का, वह कतिपय गूढ़ नियोजनात्रों द्वारा अपने भावों को इस रूप में व्यक्त करता है, जिससे भाव और प्रर्थमत्ताएं घूंघट में से झांकती हुई नारी के मुख सौन्दर्य के समान साहित्य रसिकों हृदय में कुतूहल और मनोरंजन का सृजन करें ।
(३) अर्थ गर्भत्व के लिये कलाकार कुछ इकाइयों की सृष्टि और उनका प्रतीकवत् प्रयोग करता है । अर्थ गर्भत्व में भावात्मकता रहती है, जिसकी वस्तुनिष्ठ व्यंजना कलाकार के लिये संभव नहीं । श्रतएव कुछ व्यंजनागर्भी
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