Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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संकेतों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें हम सामान्य भाषा में प्रतीक कहते हैं। प्राकृत कथाओं में निम्न प्रतीकों की योजना उपलब्ध होती
(१) शब्द प्रतीक--ऐसे शब्दों की योजना, जो शब्द चित्रों के साथ किसी प्रमुख
भाव की अभिव्यक्ति करते हैं। इस प्रकार के प्रतीक दो श्रेणियों में विभक्त किये जा सकते हैं-सन्दर्भीय और संघनित । सन्दर्भीय प्रतीकों के वर्ग में वाणी और लिपि से व्यक्त शब्द पाते हैं। जैसे, समरादित्य यह नाम स्वयं ही सन्दर्भीय प्रतीक है, यह कष्टसहिष्णुता, त्याग, व्रतपालन की दृढ़ता प्रादि का द्योतक है। संदर्भ के अनुसार यह जन्म-जन्मान्तरों में अपने कर्तव्य और व्रतों में दृढ़ रहता है और अन्त में निर्वाण प्राप्त करता है । संघनित प्रतीकों के उदाहरण धार्मिक कृत्यों एवं किसी अवतारी पुरुष के जन्म लेने के पूर्व पाने वाले स्वप्नों
में पाये जाते हैं। (२) अर्थभित प्रतीक-इस कोटि के प्रतीकों का प्रयोग जन्म-जन्मान्तरों की
परम्परा में विशेष रूप से हुया है । जैसे, मानी व्यक्ति को अपनी नाक-सम्मान को चिन्ता अधिक रहती है। वह पद-पद पर मान करता है, फलस्वरूप मरकर हाथी होता है और नाक की चिन्ता रखने के कारण लम्बी नाक-सूड़ पाता है । इस कोटि के प्रतीक संवेगात्मक
तनावों को व्यंजना में बहुत सहायक होते हैं। (३) भाव प्रतीक-भावों को अभिव्यंजना के लिए जो प्रतीक व्यवहार में लाये
जाते हैं, वे भाव प्रतीक कहलाते हैं । जैसे, दीपक या सूर्य का प्रयोग केवल ज्ञान के लिए किया गया है। सिंह वीरता का द्योतक, श्वेत रंग पवित्रता का द्योतक एवं पोत भंग होने पर पटरे का प्राप्त होना गुरु
की प्राप्ति का द्योत (४) बिम्ब प्रतीक--इस प्रकार के प्रतीकों द्वारा अर्थ की या अमूर्त भावों की
अभिव्यंजना बिम्बनिर्माण शैली में प्रस्तुत की जाती है । प्राकृत कथा साहित्य में इस श्रेणी के प्रतीकों की योजना बहलता से हई है। जैसे. नाय-धम्मकहा में कछुपा भयभीत होकर अपने अंगों को समेटता हुआ सुखी रहता है, यह प्रतीक हमारे सामने एक बिम्ब उपस्थित करता है कि जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों का संयम करता है, सभी ओर से अपनी प्रवृत्तियों को समेटता है, वह मुमुक्षु अपनी साधना में सफल होता है। लौकी कीचड़ से आच्छादित हो जाने पर पानी में डूब जाती है, यहां लौकी प्रतीक जीवात्मा का है और हमारे समक्ष यह बिम्ब उपस्थित करता है कि जीवात्मा कर्म के भार से आच्छन्न होने पर अनन्त संसार का परिभ्रमण करता है। इसी प्रकार पुंडरीक दृष्टान्त में प्रतीकों द्वारा सुन्दर बिम्बों की अभिव्यंजना होती है। इस दृष्टान्त में वर्णित सरोवर संसार का बिम्ब, पानी कर्म का बिम्ब, कीचड़ कायभोग का बिम्ब और विराट श्वेत कमल राजा का बिम्ब उपस्थित करता है। विभिन्न मतवादियों के बीच सद्धर्मोपदेश अपनी धर्मदेशना द्वारा लोगों को निर्वाणमार्ग का उपदेश देता है । संसार में कर्मभार से आच्छन्न अनादि मियादृष्टि इस धर्मोपदेश से वंचित रहते है। फलतः उन्हें संसार परिभ्रमण करना पड़ता है ।
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