Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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वाले गन्धोत्कट कमदों में रसलोभ से कम्पमान भ्रमर छककर मकरन्द पान कर रहे हैं। यह सुन्दर रात्रि कथा कहने के लिये बहुत ही उपयुक्त है। बताया है--
जोहाऊरिय कोस कान्ति धवले सव्वंग गंधुक्कडे । णिबिग्घं घर-दीहियाए सुरसं वेवंतओ मासलं ॥ आसाएइ सुमंजु गुंजिय-रवो तिगिच्छि-पाणासवं ।
उम्मिलंत दलावली-परिचओ चंदुज्जुए छप्पओ ॥ इसके पश्चात कथा आरंभ होती है । बीच-बीच में कवि बिना प्रसंग के ही "प्रियतम", "कुवलयदलाक्षि" आदि सम्बोधनों का प्रयोग कर बैठता है, और कथा की कड़ी को आगे बढ़ाता हैं।
_ "जंवरियं" में प्रश्नोत्तर शैली का अवलम्बन ले कर ही कथा का वर्णन किया गया है। इसमें छः प्रकार के पुरुष बताये गये हैं--अधमाधम, अधम, मध्यम, मध्यमोत्तम उत्तम, उत्तमोत्तम। धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थ से रहित कट अध्यवसायी, पापी, मद्य, मांस और मधु में रत भिल्लादि अधमाधम है। विषयासक्त, व्यसनी अधम है। तीनों पुरुषार्थों का सन्तुलित रूप से सेवन करने वाले गृहस्थ मध्यम हैं। धर्मादि में आसक्त, गृहस्थी में रत व्यक्ति मध्यमोत्तम है। मुनि उत्तम तथा तीर्थकर उत्तमोत्तम है। इन छः प्रकार के श्रोताओं में से केवल तीन प्रकार के व्यक्तियों का ही कल्याण होता है। । प्रायः समस्त चरित काव्यों में प्रश्नोत्तर शैली उपलब्ध होती है। नेमिचन्द्र सूरि ने महावीर चरियं में भगवान ऋषभदेव से भरत ने पूछा कि प्रभो! जैसे आप तीर्थकर है, वैसे क्या अन्य तीर्थंकर भी होंगे? ऋषभदेव ने भरत के प्रश्नों का उत्तर देते हुए वेसठ शलाका पुरुषों की उत्पत्ति के संबंध में बताया और तीर्थंकर महावीर की समस्त भवावली बतलाई थी। इस प्रकार कथा को आगे बढ़ाया। प्राकृत के चरित-काव्यों का यह स्थापत्य रहा है कि उनमें कथा का आरम्भ प्रश्नोत्तर से होता है । __ रयणचूडराय चरियं में भी श्रेणिक महाराज ने गौतम से रत्नचूडराय का चरित पूछा और गौतम ने इस चरित का निरूपण किया ।
२। पूर्वदीप्ति-प्रणाली--पूर्वजन्म के क्रिया कलापों की जातिस्मरण द्वारा स्मृति कराकर कथाओं में रसमत्ता उत्पन्न की गई है। इस स्थापत्य की विशेषता यह है कि कथाकार वटनाओं का वर्णन करते-करते अकस्मात कथाप्रसंग के सूत्र को किसी विगत घटना के सूत्र से जोड़ देता है, जिससे कथा की गति विकास की ओर अग्रसर होती है। आधुनिक कथा-साहित्य में इस स्थापत्य को "फ्लैश बैक पद्धति" कहा गया है।
कथाकार को घटनाओं के या किसी एक प्रमुख घटना के मामिक वर्णन करने का अवसर मिल जाता है और वह कथा के गतिमान सूत्र को कुछ क्षणों के लिए ज्यों-कात्यों छोड़ देता है। पश्चात् पिछले सूत्र को उठाकर विगत किसी एक जीवन अथवा अनेक जन्मान्तरों की घटनाओं का स्मरण लाकर कथा के गतिमान सूत्र में ऐसा धक्का लगाता
१ . ली० गा० २४ । २--जं० च० गा० २५--२९ । ३--म० च० गा० ९९-१०० । ४---एत्थंतरम्मि भणियं सेणियराइणा भयवं । को एस रयणचूडो राया, काओ ? __ वा ताओ तिलयसुन्दरिम इयाओ तस्स पत्तीओ ।। रयणचूडचरिय पृ० २।
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