Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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संस्काराधीन ही उसे समस्त कार्य करने पड़ते हैं । आजकल की सफल कहानी इसी सकलकथा का एक संस्करण हैं ।
खंडकथा का वर्णन करते हुए हेमचन्द्र ने बताया है
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मध्यादुपान्ततो वा ग्रन्थान्तरप्रसिद्धमितिवृत्तं यस्यां वर्ण्यते सा इन्दुमत्यादिवत् खंडकथा 1
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जिसका मुख्य इतिवृत्त रचना के मध्य में या अन्त के समीप में लिखा जाय, उसे खंडकथा कहते हैं, जैसे इन्दुमती । एक देशवर्णन खंडकथा है । खंडकथा का शाब्दिक अर्थ कथा के किसी अंश से हैं । खंडकथा की कथावस्तु बहुत छोटी होती हैं, जीवन का लघुचित्र ही उपस्थित करती है। दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि प्राकृत कथा साहित्य की वह विधा है, जिसमें मध्यस्थान में मामिकता रहती है । निहित उपवेश जल पर छोड़ गये तैलबिन्दु के समान प्रसारित होते रहते हैं ।
मध्य में
उल्लावकथा एक प्रकार की साहसिक कथाएं हैं, जिनमें समुद्रयात्रा या साहसपूर्वक किये गये प्रेम का निरूपण रहता है । इनमें असंभव और दुर्घट कार्यों की व्याख्या भी रहती है । उल्लावकथा का उद्देश्य नायक के महत्वपूर्ण कार्यों को उपस्थित कर पाठक को नायक के चरित्र की ओर ले जाना है । कथा की इस विधा में देशी शब्दों का प्रयोग, कोमलकान्त ललित पदावली के साथ किया जाता है । उल्लावकथा में धर्मचर्चा का रहना नितान्त आवश्यक माना जाता है यद्यपि इसकी पदावली छोटी-छोटी होती हैं । लेखक भावों को कुशलता और गहनता के साथ निबद्ध करता है ।
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परिहासकथा हास्य-व्यंग्यात्मक कथा है । इसमें किसी ऐसे तथ्य को उपस्थित किया जाता है जो हास्योत्पादन में अथवा व्यंग्यात्मकता का सृजन करने में सहायक हो । हास्योत्पादक या व्यंग्यात्मक तथ्य ही हास्य-व्यंग्यात्मक कथा की जान है । सामान्यतः हास के चार भेद मिलते हैं -- मन्दहास, कलहास, अतिहास एवं परिहास । भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में हास के छः भेद बतलाये हैं" ।
स्मित, हसित, विहसित, उपहसित, अपहसित और अतिहासित । स्मितहास्य में कपोलों के निचले भाग पर हंसी की हल्की छाया रहती है, कटाक्षसौष्ठव समुचित रहता है तथा दांत नहीं झलकते । हसित में मुख-नेत्र अधिक उत्फुल्ल हो जाते हैं, कपोलों पर हास्य प्रकट रहता है, तथा दांत भी कुछ-कुछ दिखलाई पड़ते हैं । विहसित में आंख और कपोल आकुंचित हो जाते हैं, मधुर स्वर के साथ मुख पर लालिमा झलक जाती है । उपहसित में नाक फूल जाना, दृष्टि में कुटिलता का आ जाना तथा कन्धे और सिर का संकुचित हो जाना शामिल है । असमय पर हंसना, हंसते हुए आंखों में आंसुओं का आ जाना तथा कन्धे और सिर का हिलने लगना अपहसित लक्षण हैं। नेत्रों तीव्रता से आंसू आना, ठहाका मारकर जोर से हंसना अतिहसित हैं ।
परिहास में केवल हास के कारणों को या इस प्रकार की घटनाओं को उपस्थित किया जाता है, जो हास्य का संचार करने में सक्षम हों । परिहास कथा में हास्य व्यंग्य की प्रधानता रहती है, कथा के अन्य तत्वों की नहीं ।
प्राकृत कथा साहित्य में उपर्युक्त कथाविधाओं का ही उल्लेख मिलता है । हेमचन्द्र ने अपने काव्यानुशासन में कथाओं के बारह भेद बतलाये हैं ।
१ - हम० काव्या० प्र० ५ सूत्र ९-१० पृ० ४६५ ।
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-- स्मितमथ हसितं विहसितमुपहसिञ्चापहसितमतिहसितम् ।
- भेदी स्यातामुत्तममध्यमाधमप्रकृतौ ॥ - भ० ना० ६।५२ चौखम्बा संस्करण
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