Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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(१) आल्यायिका, (२) कथा, (३) आल्यान, (४) निवर्शन, (५) प्रवलिहका, (६) मन्थल्लिका, (७) मणिकुल्या, (८) परिकथा, (६) खंडकथा, (१०) सकलकथा, (११) उपकथा और (१२) बृहत्कथा।
धीर प्रशान्त नायक के द्वारा संस्कृत गद्य में अपना वृत्तान्त लिखा जाना आख्यायिका और समस्त भाषाओं में गद्य-पद्य में लिखा जाना कथा है। उपाख्यान प्रबन्ध का एक भाग है, जो दूसरों के प्रबोधन के लिए लिखा जाय, जैसे नलोपाख्यान । आख्यान अभिनय पठन अथवा गायन के रूप में एक ग्रन्थिक द्वारा कहा गया होता है--जैसे गोविन्दाख्यान । अनेक प्रकार की चेष्टाओं द्वारा जहां कार्य और अकार्य-उचित-अनुचित का निश्चय किया जाय, वहां निदर्शन होता है। जैसे--पंचतन्त्र। इसमें धूर्त, विट, कुट्टिनी, मयूर और मार्जार आदि पात्र होते हैं। जहां दो विवादों में से एक की प्रधानता दिखाई जाय, और जो अर्धप्राकृत में लिखी गई हो, वह प्रवल्हिका है, जैसे--चेटक । प्रेत-महाराष्ट्री भाषा में लिखित क्षुद्रकथा का नाम “मतल्लिका" है, जैसे अनंगवती। इस विधा में पुरोहित, अमात्य, तापस आदि व्यक्तियों की चर्चा भी हो सकती है। जिसका पूर्ववृत्त रचना के प्रारम्भ में प्रकाशित न होकर बाद में प्रकाशित हो, वह मणिकुल्या है, जैसे मत्स्यहसित ।. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से किसी एक पुरुषार्थी के उद्देश्य को लेकर लिखी गई अनेक वृत्तान्तों वाली वर्णनप्रधान रचना परिकथा है, जैसे शूद्रक । जिसका मुख्य इतिवृत्त रचना के मध्य में या अन्त के समीप लिखा जाय उसे खंडकथा कहते हैं। जंसे इन्दुमती। सकलकथा वह इतिवृत्त है, जिसके अन्त में समस्त फलों की सिद्धि हो जाय जैसे समरादित्य । प्रसिद्ध कथा के अन्तर्गत किसी भी एक पात्र के आश्रय अर्थवाली रचना का नाम बृहत्कथा है । ___ डा० ए० एन० उपाध्ये ने बृहत्कथाकोश की अपनी अंग्रेजी प्रस्तावना में वर्ण्य विषय और शैली के आधार पर समस्त जैन कथा वाङ्मय को निम्न पांच भागों में विभक्त किया है। प्राकृत कथाओं का वर्गीकरण भी इन्हीं विभागों में स्वीकार किया जा सकता है :
(१) प्रबन्ध पद्धति में शलाका पुरुषों के चरित । (२) तीर्थकर या शलाका पुरुषों में से किसी एक व्यक्ति का विस्तृत चरित । (३) रोमाण्टिक धर्म कथाएं। (४) अर्ध-ऐतिहासिक प्रबन्ध कथाएं।
(५) उपदेशप्रद कथाओं के संग्रह कथाकोश । जिन व्यक्तियों का चरित्र अन्य लोगों के लिये अनुकरणीय होता है और जो अपने जीवन में समाज का कोई विशेष कार्य करते है, तथा जिनमें साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा अनेक विशेषताएं और चमत्कार पाये जाते हैं, वे शलाकापुरुष कहलाते हैं। शलाकाए रुष ६३ माने गये हैं। इन शलाका परुषों की जीवन गाथानों को पौराणिक शैली में वर्णित करना प्रथम प्रकार की कथाएं है। प्राकृत में शीलांक सार का चउप्पन्न महापुरिसचरियं नामक बृहद कथाग्रंथ इस शैली का उपलब्ध हैं। इन चरितों में पौराणिक तत्त्वों की भरमार है। । दूसरे प्रकार की कथाली में शलाका पुरुषों में से किसी एक महापुरुष के कथा सूत्र को अवलम्बित कर इसमें उनकी पूर्व भवावली तथा अन्य संबद्ध व्यक्तियों के चरितों को मिलाकर कथाओं की रचना की गई है। ये सब कथा ग्रन्थ पौराणिक शैली के हैं। इन ग्रन्थों में इक्ष्वाकवंश, हरिवंश आदि राजवंशीय नपों के अथवा आदि धर्मती जिनवीरों के, भरत, सगर आदि चक्रवतियों के, नमि, विनमि आदि विद्याधरों के, पुंडरीक
१--हेम० का० अ० ८ सू० ७-८, प०४६२-४६३, ४६४-४६५ । २-~इन्ट्रोडक्शन, बृहत्कथाकोष, पृ० ३५ ।
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