Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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अर्थात् कवि की पत्नी ने कवि से आग्रह किया कि आप प्राकृत भाषा में सीधीसादी युवति स्त्रियों के लिए मनोहर और इधर-उधर के देशी शब्दों से सुललित दिव्यमानुषी कथा कहिये। अभिप्राय यह है कि ऐसी कथा कहिये, जो दैवी तथा मानुषी घटनाओं से सम्बद्ध हो।
अपनी प्रिया के इस प्रकार के अनुरोध को सुनकर कवि ने कहा--हे त्रस्त बालहिरण के समान चंचल नेत्रवाली! यदि ऐसी बात है तो फिर प्रसंगयुक्त सुव्यवस्थित कथावस्तु को सुनो।
। इससे स्पष्ट है कि दिव्य-मानुषी कथा बड़ी सरस और आकर्षक होती है। यह मार्मिक और भावप्रधान विधा है। इस कथा में एक सबसे बड़ी बात यह है कि चरित्र और घटना इन दोनों का संतुलन पूर्णरूप से रहता है। मार्मिक स्थल मनोरंजन और रसवर्षण इन दोनों कार्यों को करते हैं।
दिव्य-मानुषी कथा में व्यंजक घटनाएं और वार्तालाप गम्भीर मनोभावों का सृजन करते हैं। परिस्थितियों के विशद और मार्मिक चित्रणों में नाना प्रकार के घात-प्रतिघात परिलक्षित होते हैं। विभिन्न वर्गों के संस्कार--जिनका सम्बन्ध देव और मनुष्यों से है, स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। प्रेम का पुट या संयोग इन कथाओं में अवश्य रहता है। किसी दैवी अभिशाप के कारण प्रेमी-प्रेमिका विछुड़ जाते हैं, उनका पुनः संयोग किसी दैवी घटना के घटित होने पर ही होता है। कथानक में नाना प्रकार की वक्रता, चरित्र में उच्चावचता एवं हास्य-व्यंग्य का सुन्दर सम्मिश्रण इन कथाओं का प्रधान उपजीव्य है। साहसपूर्ण यात्राएं, नायक-नायिकाओं के विभिन्न प्रकार के प्रेमाकर्षण एवं सौन्दर्य के विभिन्न रूप दिव्यमानुषी कथा में पाये जाते हैं। मनोरंजन के साथ चरित्र विकास की पूरी गंजाइश रहती है। प्राकृत कथाओं में वे ही कथाएं दिव्य-मानषी कही जायंगी, जिनमें दिव्यलोक और मनुष्यलोक को मात्र घटनाएं ही वणित न हों, अपितु कुछ ऐसे प्रभावक मथितार्थ भी उपलब्ध हों, जिनका सम्बन्ध लोकजीवन से हो।
प्राकृत साहित्य में कथाओं का तीसरा वर्गीकरण भाषा के आधार पर भी उपलब्ध होता है। स्थूल रूप से संस्कृत, प्राकृत और मिश्र ये तीन भाषाएं होने के कारण कथासाहित्य भी तीन वर्गों में विभक्त किया गया है। बताया है--
अण्णं सक्कय-पायय-संकिण्ण-बिहा सुवण्ण-रइयाओ।
सुव्वंति महा-कइ-पुंगवेहि विविहाउ सुकहाओ ॥ संस्कृत, प्राकृत और मिश्रभाषा में सुन्दर शब्दों कोमलकान्त पदावलियों में रची हुई महाकवियों की विविध कथाएं सुनी जाती हैं। अतः भाषा की दृष्टि से कथाओं के तीन भेद हो सकते हैं।
उद्योतनसूरि ने स्थापत्य के आधार पर कथाओं के पांच भेद किये हैं।
१--लीला० गा० ३६, पृ० १० ।
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