Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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श्रर्थात् -- धनपुर नगर में धनुर्द्धर नाम का राजा शासन करता था । इस नगर में धनदेव नाम का सेठ प्रपनी धनदेवी नाम की पत्नी सहित रहता था । इस दम्पति के धनचन्द्र, धनदेव, धनपाल और धनगिरि ये चार पुत्र थे । ये चारों पुत्र समुद्र के समान गंभीर थे । इनकी क्रमशः धंधी, धामी, धनदा और धनश्री नाम की भार्याएं थीं, जो अत्यन्त स्नेहपूर्वक निवास करती थीं ।
उक्त कथाओं में कवि ने नगर से लेकर राजा, सेठ, सेठानी, सभी के नामों में धन शब्द का योग रखकर इन व्यक्तिवाचक संज्ञाओं में अपूर्व नादकतत्त्व की योजना की है । पद्य में कथा के लिखे जाने के कारण इस प्रकार की अनुप्रास योजना मात्र भाषा को ही अलंकृत नहीं बनाती, श्रपितु उसमें एक विशेष प्रकार का सौष्ठव भी उत्पन्न करती है ।
अनुरंजन के लिए कवि ने परिस्थिति और वातावरण का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है । कृपण श्रेष्ठी कथा में लक्ष्मी निलय नाम के एक कृपण सेठ का बड़ा ही जीवन्त चित्र प्रस्तुत किया है । यह खान-पान, रहन-सहन, दान-पूजा श्रादि में एक कौड़ी भी खर्च नहीं करता है । अपने पुत्र को पान खाते हुए देखकर उसे अपार वेदना होती है । लेखक ने उसकी कृपणता को व्यंजित करने के लिए कई मर्मस्थल उपस्थित किये हैं । उसकी पत्नी को बच्चा होने पर वह उसे भोजन देने में भी कंजूसी करता है । कहीं दान न देना पड़े, अतः सन्त-महापुरुषों के दर्शन भी करने नहीं जाता । इस प्रकार वातावरण और परिस्थिति नियोजन में कवि की प्रवीणता दिखलायी पड़ती है ।
सुन्दरी की प्रेम-कथा तो इतनी सरस और मनोरंजक है कि उसे समाप्त किये बिना पाठक रह नहीं सकता है । धनसार सेठ की कन्या सुन्दरी विक्रम राजा के गुण सुनकर उससे प्रेम करने लगी। माता-पिता ने उसका विवाह सिंहलद्वीप के किसी सेठ-पुत्र के साथ तय कर दिया । सुन्दरी ने अपनी चतुराई से एक रत्नों के थाल के साथ एक तोता राजा को भेंट में भिजवाया । राजा ने तोता का पेट फाड़कर देखा तो उसमें एक सुन्दर हार और कस्तूरी से लिखा हुआ प्रेमपत्र मिला । पत्र में लिखा था-प्राणनाथ में सदा तुम्हारे गुणों में लीन हूँ, वह अवसर कब आयेगा, जब मैं अपने इन नेत्रों से आपका साक्षात्कार करूँगी । वैशाखवदी द्वादशी को सिंहलद्वीप के निवणाग नामक सेठ-पुत्र के साथ मेरा विवाह होने वाला है । नाथ ! मेरे इस शरीर का स्पर्श आपके अतिरिक्त अन्य नहीं कर सकता, आप अब जैसा उचित हो, करें । राजा अपने अग्निवेताल भृत्य की सहायता से रत्नपुर पहुँचा और उसने सुन्दरी से विवाह किया । इस प्रकार इस कथा संग्रह में मर्मस्पर्शी स्थलों की कमी नहीं है । इस संकलन की कथाओं की निम्न विशेषताएं हैं:
(१) कथानक संयोग और देवी घटनाओं पर आश्रित । (२) कथाओं में सहसा दिशा का परिवर्तन ।
( ३ ) समकालीन सामाजिक समस्याओं का उद्घाटन ।
(४) पारिवारिक जीवन के मधु और कटु चित्र |
(५) संवादतत्त्व की अल्पता या प्रभाव, किन्तु घटना सूत्रों द्वारा कथाओं में गतिमत्व धर्म की उत्पत्ति ।
(६) विषयवस्तु में जीवन के अनेक रूपों का समावेश ।
(७) कथाओं के मध्य में धर्मतत्त्व या धर्मसिद्धांतों का नियोजन ।
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