Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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है कि अन्य प्रकार की कथाओं में भी इसकी अन्विति है । दशवेकालिक में इसका स्वरूप निम्न प्रकार बतलाया गया है-
विज्जासिपमुवाओ, अणिवेओ संचओ य दक्खतं । सामं दंडो भेओ उवप्पयाणं च अत्थकहा ' ॥
विद्या, शिल्प, उपाय - प्रयास - अर्थार्जन के लिए किया गया प्रयास, निर्वेद-संचय, साम, दंड और भेद का जिसमें वर्णन हो या जिसमें ये विषय अनुमित या व्यंग्य हों, वह अर्थकथा है | अर्थप्रधान होने से अथवा आजीविका के साधनों-- असि, मषि, कृषि, सेवा, शिल्प और वाणिज्य अथवा धातुवाद आदि अर्थप्राप्ति के विविध साधनों का जिसमें निरूपण हो, वह अर्थकथा है । अभिप्राय यह है कि जिसकी कथावस्तु का सम्बन्ध अर्थ से हो, वह अर्थकथा कहलाती है । इस विभाग में राजनैतिक कथाओं का भी समावेश हो जाता है । सामान्यतः आर्थिक या राजनैतिक कथाओं का मेरुदंड एक ही विचार परम्परा है । इन कथाओं का घटनाचक्र बहुत ही रोचक और अद्भुत कार्यकलापों से संयुक्त रहता है । आर्थिक कथाएं मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं का युगव्यापी समाधान उपस्थित करती हैं। पूंजीवाद और समाजवाद जैसे अर्थ से सम्बन्ध रखने वाले सिद्धांतों का निरूपण भी इन कथाओं में रह सकता है । प्राकृत कथाओं में संचय के प्रति विगर्हणा तथा परिग्रह-परिमाण की महत्ता भी अंकित की गयी है । अर्थप्रधान कथाओं में आदर्श के साथ यथार्थ का भी चित्रण रहता है ।
कामकथा के स्वरूप का विवेचन निम्न प्रकार आया हैरुवं वओ य वेसो दक्खत्तं सिक्वियं च विसएसुं । दिठ्ठे सुयमणुभूयं च संथवो चैव कामकहा* ॥
रूप-सौन्दर्य अवस्था -- युवावस्था, वेश, दाक्षिण्य आदि विषयों की तथा कला को शिक्षा का दृष्टि, श्रुत, अनुभूत और संथव -- परिचय प्रकट करना कामकथा है ।
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सेक्स - - यौन सम्बन्ध को लेकर कथाओं के लिखे जाने की परम्परा प्राकृत में पुरानी है। काम कथाओं में रूप-सौन्दर्य के अलावा सेक्स समस्या पर कलात्मक ढंग से विचार किया जाता है । इन कथाओं में समाज का भी सुन्दर विश्लेषण अंकित रहता है । प्रेम एक सहज मानवीय प्रवृत्ति है और यह मानव समाज की आदिम अवस्था से ही काम करती आ रही है । प्रेम का भाव मानव के हृदय में स्वभावतः जाग्रत होता है और एक विचित्र प्रकार की आत्मीयता का आश्रय ग्रहण कर विकसित होता है । कामकथाओं में प्रेमकथाओं का भी अन्तर्भाव रहता है । प्रेमी और प्रेमिका के उत्कट प्रेम, उनके मिलन के मार्ग को बाधाएं, मिलन के लिए नाना प्रकार के प्रयत्न तथा अन्त में उनके
१ - - तत्थ अत्थकहा नाम, जा अत्थोवायाण पडिबद्धा, असि मसिकसि - वाणिज्य - सिप्प संगया, विचित्तधा उवायाइपमुहम्होवायसंपउत्ता, साम-भय-उवप्पयाण- दण्डाइ पयत्थ विरइया सा अत्थकहत्ति भण्णइ । - - याको० सम०, पृ० २ ।
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२ --- दश०गा० १८९, पृ० २१२ ।
३-- जा उणकामो वायाण विसया वित्त-वपु - व्वय-कला- दक्खिण्ण-परिगया, अणुराय पुल अपडिवत्ति जो असारा, दूईवापार-रमिय, भावानुवत्तणाइ पयत्थसंगया सा काम भण्णइ । - - याको० स०, पृ० ३ ।
४--- दश०गा० १९२, पृ० २१८ ।
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