Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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जा सकते हैं। अवशेष ग्रन्थों के संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं का जा सकता है। उपलब्ध सामग्री के आधार पर प्राचार्य हरिभद्र सूरि की निम्न रचनाएं मानी जा सकती
सं० मुद्रित)
___ आचार्य हरिभद्र सूरि की रचनाओं को मुख्य रूप से निम्न दो भागों में विभक्त किया जा सकता है :--
१. आगमग्रन्थों और पूर्वाचार्यों की कृतियों पर टीकाएं २. स्वरचित ग्रन्थ--(क) स्वोपज्ञ टीका सहित
(ख) स्वोपज्ञ टीका रहित विवरण निम्न प्रकार हैं:-- १ अनुयोग द्वार विवृत्ति (शिष्यहिता)
(सं० मुद्रित) २ आवश्यक सूत्र बृहद् टीका
(प्रा० अनुपलब्ध) ३ आवश्यकसूत्र विवृत्ति (शिष्यहिता)
(सं० मुद्रित) ४ चैत्यवन्दन सूत्रवृत्ति (ललित विस्तरा)
(सं० मुद्रित) ५ जीवाजीवाभिगम सूत्र लघुवृत्ति ६ तत्त्वार्थ सूत्र लधुवृत्ति (अपूर्ण)
(सं० मुद्रित) ७ दशवकालिक बहवृत्ति वा शिष्यबोधिनी
(सं० मुद्रित) ८ नन्दी अध्ययन टीका
(सं० मुद्रित) ६ पंचसूत्र व्याख्या
(सं० मुद्रित) १० प्रज्ञापना सूत्र टीका वा प्रवेश व्याख्या
(सं० मुद्रित) ११ पिण्ड नियुक्ति वृत्ति
(सं० अनुपलब्ध) १२ वर्गके वलिक सूत्र वृत्ति
(सं० अनुपलब्ध) १३ ध्यानशतक वृत्ति
(सं० मुद्रित) जिनभद्र गणिरचित ध्यानशतक पर
टीका। १४ श्रावक प्रज्ञप्ति टीका
(सं० मुद्रित) उमास्वातिरचित श्रावक प्रज्ञप्ति पर
टीका। १५ न्याय प्रवेश टीका
(सं० मुद्रित) बौद्धाचार्य दिङ नागकृत न्याय प्रवेश
पर टीका। १६ न्यायावतारवृत्ति
(सं० अनुपलब्ध) सिद्धसेन कृत न्यायावतार पर
टीका। स्वोपज्ञ टीका सहित रचित मौलिक ग्रन्थ १७ अनेकान्त जयपताका १८ अनेकान्त जयपताकोद्योत दीपिका
(सं० मुद्रित) अनेकान्त
जयपताका की टीका। १६ पंचवत्थुग
(प्रा० मुद्रित) २० योगदृष्टि समुच्चय
(सं० मुद्रित) २१ शास्त्रवार्ता समुच्चय
सं० मुद्रित) २२ सर्वज्ञसिद्धि
(सं० मुद्रित) २६ हिंसाष्टक
(सं० मुद्रित)
(सं० मुद्रित)
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