Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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कथावस्तु और समीक्षा
इस कथाकृति में श्रुतपंचमी व्रत का माहात्म्य बतलाने के लिए दस कथाएं संकलित हैं। कथाकार का विश्वास है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार को सुखसामग्री प्राप्त होती है।
इसमें जयसेण कहा. नंदकहा, भहाकहा, वीरकहा, कमलाकहा, गणाणरागकहा, विमल कहा, धरणकहा, देवोकहा एवं भविसयतकहा ये दस कथाएं निबद्ध को गयो है। समस्त कृति में २,००४ गाथाएं हैं। उक्त दस कथाओं में से भविस्सयतकहा की संक्षिप्त कथावस्तु देकर इस कृति के कथास्वरूप को उपस्थित किया जाता है ।
करुजांगलदेश के गजपुर नगर में कौरव वंशीय भूपाल नाम का राजा राज्य करता था। इस नगर में वैभवशाली धनपाल नामका व्यापारी रहता था। इसकी स्त्री का नाम कमलश्री था। इस दम्पति के भविष्यदत्त नामका पुत्र उत्पन्न हुआ।धनपाल सरूपा नामक एक सुन्दरी से विवाह कर लेता है और परिणामस्वरूप अपनी पहली पत्नी तथा पुत्र की उपेक्षा करने लगता है। धनपाल और सरूपा के पुत्र का नाम बन्धुदत्त रखा जाता है। बन्धुदत्त वयस्क होकर पांच सौ व्यापारियों के साथ कंचनद्वीप को निकल पड़ता है। इस काफिले को जाते देख भविष्यदत्त भी अपनी मां से अनुमति ले, उनके साथ चल देता है। भविष्यदत्त को साथ जाते देख सरूया अपने पुत्र से कहती है--"तह पुत' करेज्ज तुमं भविस्सदत्तो जइ न एई"-पुत्र ऐसा करना जिससे भविष्यदत्त जीवित लौटकर न आवे । समुद्र-यात्रा करते हुए ये लोग मैनाक द्वीप पहुंचते हैं और बन्धुदत्त धोखे से भविष्यदत्त को यहीं छोड़ आगे बढ़ जाता है। भविष्यदत्त इधर-उधर भटकता हुआ एक उजड़े हुए किन्तु समृद्ध नगर में पहुंचता है। वह एक जिनालय में जाकर चन्द्रप्रभ भगवान की पूजा करता है। जिनालय के द्वार पर दो गाथाएं अंकित है, उन्हें पढ़कर उसे एक दिव्य सुन्दरी का पता लगता है। उस सुन्दरी का नाम भविष्यानुरूपा है। उसका विवाह भविष्यदत्त के साथ हो जाता है। जिस असुर ने इस नगर को उजाड़ दिया था, वह असुर भविष्यदत्त का पूर्वजन्म का मित्र था। अतः भविष्यदत्त की सब प्रकार से सहायता करता
पुत्र के लौटने में विलम्ब होने से कमलश्री उसके कल्याणार्थ श्रुतपंचमी व्रत का अनुष्ठान करती है। इधर भविष्यदत्त सपत्नीक प्रचुर सम्पत्ति के साथ घर लौटता है। मार्ग में उसकी बन्धुदत्त से पुनः भेंट हो जाती है, जो अपने साथियों के साथ व्यापार में असफल हो विपन्न दशा में था। भविष्यदत्त उसकी सहायता करता है। प्रस्थान के समय भविष्यदत्त पूजा करने जाता है, इसी बीच बन्धदत्त उसकी पत्नी और प्रचर धनराशि के साथ जहाज को रवाना कर देता है । भविष दत्त वहीं रह जाता है। मार्ग में जहाज तूफान में फंस जाता है, पर जिस-किसी तरह बन्धुदत्त धनराशि के साथ गजपुर पहुंच जाता है। वह भविष्यानुरूपा को अपनी भावी पत्नी घोषित करता है और निकट भविष्य में शीघ्र ही उसके विवाह की तिथि निश्चित हो जाती है। इधर भविष्यदत्त एक यक्ष की सहायता से गजपुर पहुंचता है। वह राजा भूपाल के दरबार में बन्धुदत्त की शिकायत करता है और प्रमाण उपस्थित कर अपनी सत्यता सिद्ध करता है। भविष्यानुरूपा भविष्यवत्त को मिल जाती है। राजा भविष्यदत्त से प्रसन्न हो जाता है और उसे प्राधा राज्य देकर अपनी कन्या सुतारा का विवाह भी उसके साथ कर देता है। भविष्यदत्त दोनों पत्नियों के साथ प्रानन्दपूर्वक समययापन करता है। निर्मल बुद्धि मुनि से अपनी पूर्वभवावली
१--नाणपंचमी कहा १०/५८
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