Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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के लिए तपो माहात्म्य वर्णनाधिकार में वीर चरित, विसल्ला, शौर्य और रुक्मिणीमधु के आख्यान वर्णित है । विशुद्ध भावना रखने से वैयक्तिक जीवन में कितनी सफलता मिलती है तथा व्यक्ति सहज में आत्मशोधन करता हुआ लौकिक और पारलौकिक सुखों को प्राप्त करता है । सद्गति के बन्ध का कारण भी भावना ही हैं । इसी कारण भावना विशुद्धि पर अधिक बल दिया गया है । भावना विशुद्धि के तथ्य की अभिव्यंजना करने के लिए भावना स्वरूप वर्णनाधिकार में द्रमक, भरत और इलापुत्र के श्राख्यान संकलित हैं । सम्यक्त्ववर्णनाधिकार में सुलसा तथा जिनबिम्ब दर्शन फलाधिकार में सेज्जंभव और
क कुमार के प्रख्यान हैं । यह सत्य है कि श्रद्धा के सम्यक् हुए बिना जीवन की भव्य इमारत खड़ी नहीं की जा सकती हैं। जिस प्रकार नींव की ईंट के टेढ़ी रहने से समस्त दीवाल भी टेढ़ी हो जाती है प्रथवा नीचे के वर्तन के उलटे रहने से ऊपर के वर्त्तन को भी उलटा ही रखना पड़ता है, इसी तरह श्रद्धा के मिथ्या रहने से ज्ञान और चरित्र भी मिथ्या ही रहते हैं । सुलसा प्राण्यान जीवन में श्रद्धा का महत्व बतलाता है और साथ ही प्राणी किस प्रकार सम्यक्त्व को प्राप्त कर अपनी उन्नति करता हैं, का आदर्श भी उपस्थित करता है। जिनपूजा फलवर्णनाधिकार में दीपकशिखा, नवपुष्पक और पद्मोत्तर तथा जिनवन्दन फलाधिकार में बकुल और सेदुबक तथा साधुवन्दन फलाधिकार में हरि की कथाएँ हैं । इन कथाओं में धर्म तत्वों के साथ लोक कथातत्व भी पर्याप्त मात्रा में विद्यमान हैं । सामायिक फलवर्णनाधिकार में सम्राट् सम्प्रति एवं जिनागम श्रवणफलाधिकार में चिलाती पुत्र और रोहिणेय नामक चोरों के प्राख्यान हैं । इन प्राख्यानों द्वारा लेखक ने जीवन दर्शन का सुन्दर विश्लेषण किया है। चोरी का नीच कृत्य करने वाला व्यक्ति भी अच्छी बातों के श्रवण से अपने जीवन में परिवर्तन ले श्राता है और वह अपने परिवत्तित जीवन में नाना प्रकार से सुख प्राप्त करता हूँ । आगम के वाचन और श्रवण दोनों ही में पूर्व चमत्कार है । नमस्कार परावर्तनफलाधिकार में गाय भैंस और सर्प के प्राख्यानों के साथ सोमप्रभ एवं सुदर्शना के भी प्राख्यान ये हैं । इन प्राख्यानों में जीवनोत्थान की पर्याप्त सामग्री है ।
स्वाध्याधिकार में भव और नियमविधान फलाधिकार में दामनक, ब्राह्मणी चण्डचूडा, गिरिडम्ब एवं राजहंस के प्राख्यान हैं । मिथ्या दुष्कृतदान फलाधिकार में क्षपक, चंद्र और प्रसन्नचन्द्र एवं विनयफलवर्णनाधिकार में चित्रप्रिय और वनवासि यक्ष के श्राख्यान हैं । प्रवचनोन्नति अधिकार में विष्णुकुमार, वैर स्वामी, सिद्धसे, मल्लवादी समित्त प्रौर श्रखपुट नामक श्राख्यान हैं। निजधर्माराधनोपदेशाधिकार में योत्करमित्र, नरजन्म; रक्षाधिकार में वणिक् पुत्रत्रय तथा उत्तमजनसंसर्गिगुण वर्णनाधिकार में प्रभाकर, वरशुक और कम्बल - सबल के प्राख्यान हैं । इन प्राख्यानों में ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन भी किया गया है । रोचकता के साथ भारतीय संस्कृति के अनेक तत्त्वों का समावेश किया गया है ।
इस कथाकोश की निम्न विशेषताएं हैं:
( १ ) प्रायः सभी कथाएं वर्णनप्रधान हैं । लेखक ने वर्णनों को रोचक बनाने की चेष्टा नहीं की है ।
(२) सभी कथाओं में लक्ष्य की एकतानता विद्यमान है ।
(३) प्रख्यानों में कारण, कार्य, परिणाम, अथवा प्रारम्भ, उत्कर्ष और अन्त उतने विशद रूप में उपस्थित नहीं किये गये हैं, जितने लघु श्राख्यानों में उपस्थित होने चाहिए। पर आदर्श प्रस्तुत करने का लक्ष्य रहने के कारण कथानकों में कार्य-कारण परिणाम की पूरी दौड़ पायी जाती है ।
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