Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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कौतूहल ने पूर्ण सहयोग प्रदान किया था, उस प्रेम प्रवृत्ति की गम्भीर और विराट् चेतना का उदघाटन हरिभद्र की उत्तरकालीन कुवलयमाला में मिलता है। इस युग में जन्मजन्मान्तरों की लम्बी श्रृंखला की सीमा भी घटने लगी और प्रतीत जीवनों की अपेक्षा वर्तमान जीवन विश्लेषण पर कथाकारों की दृष्टि अधिक जाने लगी । कथाकोषों में व्रत और पूजाविधान की महत्ताद्योतक कथाएं लिखी गई, जिनका उद्देश्य जनता में व्रत और चारित्र्य का प्रसार करना था । धनेश्वर, जिनेश्वर, लक्ष्मणगणि, महेश्वरसरि और नेमिचन्द्र सूरि ने जीवन और जगत के वैविध्य को कथा में वर्णित किया । कथा तत्व की दृष्टि से यह प्रवृत्ति पूर्णतः हरिभद्र के पश्चात् ही प्राकृत कथाओं में संवद्धत हुई है।
इस युग की प्रमुख कथा कृतियों का परिचय
कुवलयमाला
कुवलयमाला प्राकृत कथा साहित्य का अनुपम रत्न हैं । इसके रचयिता दाक्षिण्य चिह्न उद्योतन सूरि हैं। ये आचार्य हरिभद्रसूरि के शिष्य थे। इनसे इन्होंने प्रमाण, न्याय और धर्मादि विषयों की शिक्षा प्राप्त की थी । इस कथाकृति की रचना इन्होंने राजस्थान के सुप्रसिद्ध नगर जाबालिपुर ( वर्तमान जालोर) में रहते हुए वीरभद्र सूरि के बनवाये हुए ऋषभदेव के चैत्यालय में बैठकर की है। इस कथा ग्रंथ का रचनाकाल शक संवत् ७०० में एक दिन कम बताया गया है ' ।
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कथावस्तु
मध्यदेश में विनीता नामकी नगरी थी। इस नगरी में दृढ़वर्मा नाम का राजा राज्य करता था । इसकी पटरानी का नाम प्रियंगुश्यामा था । एक दिन राजा प्रास्थान मंडप में बैठा हुआ था कि प्रतिहारी ने श्राकर निवेदन किया देव शवर सेनापति का पुत्र सुषेण उपस्थित हैं, श्रापके आदेशानुसार मालव की विजयकर लौटा है । राजा ने उसे भीतर भेजने का श्रादेश दिया । सुषेण ने आकर राजा को अभिवादन किया । राजा न े उसे श्रासन दिया और बैठ जाने पर पूछा -- कुमार कुशल है ।
कुमार --- महाराज चरण-युगल प्रसाद से इस समय कुशल हैं ।
राजा -- मालव-युद्ध तो समाप्त हो गया ?
सुषेण --- देव की कृपा से हमारी सेना ने मालव की सेना को जीत लिया । हमारे संनिकों ने लूट में शत्रुनों की अनेक वस्तुनों के साथ एक पांच वर्ष का बालक भी प्राप्त किया है ।
राजा ने उस बालक को प्रास्थान मंडप में बुलवाया। बालक के अपूर्व सौन्दर्य को देखकर राजा मुग्ध हो गया और बालक का आलिंगन कर कहने लगा-- वह माता धन्य हैं, जिसने इस प्रकार के सुन्दर और गुणवान् पुत्र को जन्म दिया है ।
बालक अपने को निराश्रय जानकर रोने लगा । उसे रोते देखकर राजा के हृदय में ममता जागृत हुई । उसने अपनी चादर के छोर से उसके प्रांसू पोंछे तथा परिजनों द्वारा जल मंगवाकर उसका मुंह धोया । राजा ने मंत्रियों से पूछा -- मेरी गोद में प्रान
- एग दिणेणूणेहिं रइया वरण्हवेलाए ।
१ - जावालिउरं अट्ठावयंकुव०, पृष्ठ २८२, अन० ४३० ।
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