Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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"प्राचार्य हरिभद्र के समय, संयत जीवन और उनके साहित्यिक कार्यों की विशालता को देखते हुए उनकी आयु का अनुमान सौ वर्ष के लगभग लगाया जा सकता है और वे मल्लवादी के समकालीन होने के साथ-साथ कुवलयमाला की रचना के कितने ही वर्ष वाद तक जीवित रह सकते हैं।"
उपर्युक्त चर्चा से निम्न निष्कर्ष निकलते हैं :
१. हरिभद्र सूरि वि० सं० ८८४ (ई० सन् ८२७) के आसपास हुए मल्लवादी के समसामयिक विद्वान थे। मल्लवादी हरिभद्र से आयु में बड़े ही होंगे।
२. कुवलयमाला की रचना के समय--ई० सन् ७७८ में हरिभद्र की अवस्था ५० वर्ष की रही होगी। इस प्राय में उनका उद्योतन सूरि का गुरु होना असंभव नहीं ।
३. हरिभद्र का समय ७३० ई० से ८३० ई० तक माना जाना चाहिए ।
हरिभद्र के समय के सम्बन्ध में हमारा अपना अभिमत यह है कि जब तक हरिभद्र के ऊपर शंकराचार्य का प्रभाव सिद्ध नहीं हो जाता है, तबतक आचार्य हरिभद्र सूरि का समय शंकराचार्य के बाद नहीं माना जा सकता है । अतः मुनि जिनविजय जी ने हरिभद्र सूरि का समय, जो ई० सन् ७०० के लगाकर ७७० तक माना है, वही समीचीन है । इस मत के मान लेने से उद्योतन सूरि के साथ उनके गुरु-शिष्य के सम्बन्ध का निहि भी हो जाता है । ७३० ई० से ८३० ई० तक समय मान लेने पर ही उद्योतनसूरि के साथ गुरु-शिष्य का सम्बन्ध जुट सकता है ।
__ आचार्य हरिभद्र सूरि का जीवन परिचय
किसी भी साहित्यकार के जीवन के सम्बन्ध में विचार करने के लिए दो प्रकार की सामग्री अपेक्षित होती है--ग्राभ्यंतर और बाह्य । आभ्यंतर से अभिप्राय उस प्रकार की सामग्री से है, जिसका उल्लेख ग्रंथकार ने स्वयं किया है । बाह्य के अन्तर्गत अन्य लोगों के द्वारा उल्लिखित सामग्री प्राती है । हरिभद्र को निम्नांकित रचनाओं में उनके जीवन के संबंध में तथ्य उपलब्ध होत है:--
(१) दशव कालिक नियुक्ति टीका रे (२) उपदेश पद की प्रशस्ति (३) पंचसूत्र टीका (४) अनेकान्त जयपताका का अन्तिम अंश ५
१--जैन-साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पृ० ५५३ का पादटिप्पण । २--महत्तराया याकिन्या धर्मपुत्रेण चिन्तिता । आचार्यहरिभद्रेण टीके यं शिष्य
बोधिनी । ३--आइणिमय हरियाए रइता एते उधम्म पुत्रेण हरिभद्दायरिएण । ४--विवृत्तं च याकिनीमहत्तरासुनूश्रीहरिभद्राचार्यैः । ५--कृति धर्मतो याकिनीमहत्तरासुनोराचार्यहरिभद्रस्य ।
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