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प्रवचन-२ सीमा पर एक बुजुर्ग आदमी मिला। उसने विलियम से पूछा : 'कहाँ जा रहे हो बेटा?' विलियम ने कहा : 'न्यूयोर्क जा रहा हूँ।' 'क्यों ?' ‘भाग्य आजमाने के लिए।'
'अच्छा है बेटा, चल मुझे भी न्यूयोर्क ही आना है।' वृद्ध और विलियम न्यूयोर्क की तरफ आगे बढ़े। रास्ते में उस वृद्ध पुरुष ने विलियम को कहा : 'देख विलियम, धंधे में कुछ बातें अनिवार्य रूप से ध्यान में रहनी चाहिए | पहली बात है 'ऑनेस्टी' की, प्रामाणिकता की | धंधे में प्रामाणिकता का चुस्त पालन करना। दूसरी बात है वस्तु में मिलावट कभी नहीं करना । वस्तु में मिलावट करने से धंधा लंबे अर्से तक नहीं चलता। कभी न कभी ग्राहकों को अविश्वास हो ही जाएगा! तीसरी बात यह है कि ग्राहक को माल पूरा देना, धोखा कभी नहीं करना । वजन कम नहीं देना | चौथी बात कहता हूँ कि मनुष्य को जो कुछ मिलता है, परमात्मा की कृपा से मिलता है। इसलिए तुझे व्यापार में जो भी 'प्रोफिट' नफा हो, मुनाफा हो, उसमें से भगवान का एक हिस्सा अलग निकालना और उस हिस्से को सत्कार्य में खर्च कर देना।'
रास्ते में एक चर्च आया। विलियम ने वृद्ध के साथ भगवान को प्रार्थना की : 'ओ गोड', मैं धंधे में जो कुछ कमाऊँगा, मुझे जो मुनाफा होगा, उसमें से दसवाँ हिस्सा सत्कार्यों में व्यय करूँगा।'
विलियम ने न्यूयोर्क में साबुन बनाने की फैक्टरी डाली-छोटा-सा कारखाना। उसको जो नफा होता था, उसमें से दसवाँ हिस्सा वह सत्कार्यों में खर्च कर देता था।
परमात्मा को प्रार्थना करना, प्रतिज्ञा करना, सत्कार्य में पैसा खर्च करना, यह सब एक प्रकार की धर्मक्रियाएँ ही हैं। इन धर्मक्रियाओं से विलियम को अनाप-सनाप धन मिलता गया। उसने साबुन का नाम 'कोलगेट' रखा! दंतमंजन भी उसने बनाया। कोलगेट का दंतमंजन और साबुन विश्व के हर देश में फैल गया। विलियम ने करोड़ों डोलर कमाया, उसने दान भी खुले हाथों दिया। ___ अपने देश में तो यह प्राचीन परंपरा चलती रही है! व्यापार-धंधे में 'शुभ खाते' में लोग पैसा अलग निकालते ही हैं। भगवान का कुछ न कुछ हिस्सा रखते ही हैं और उस हिस्से की द्रव्यराशि में से सत्कार्य करते रहते हैं | 'धर्म
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