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प्रवचन- २
१९
मनुष्य को जो पसन्द होता है, वही लेना चाहता है । जो पाने की इच्छा होती है, वही पाना चाहता है। कपड़े की दुकान में सब प्रकार का कपड़ा मिलता है। घटिया 'क्वालिटी' का और बढ़िया 'क्वालिटी' का । कम मूल्य का, ज्यादा मूल्य का । 'सेल्समेन' सभी प्रकार का कपड़ा दिखाएगा और ज्यादा मूल्य का, बढ़िया प्रकार का कपड़ा खरीदने का आग्रह करेगा । परंतु लेनेवाला प्रायः अपनी पसन्द का, अपनी 'चोइस' का ही कपड़ा खरीदेगा। आपको यहाँ धर्म से प्राप्त सभी प्रकार के सुख बताए गए हैं। घटिया सुख और बढ़िया सुख! हम तो बढ़िया - उत्तम ' क्वालिटी' का सुख लेने का ही आग्रह करेंगे ! आपकी पसन्दगी क्या है - आप बताइए!
सुख माँगो मत :
धर्म का फल है सुख, यह बात तो मानते हो न ? सुख धर्म से ही मिलता है, यह बात हृदय में जँची है न? 'धर्मात् सुखम् ' धर्म से सुख ही मिलता हैइस बात का निर्णय आपके मन में हो जाय, इसके बाद मैं बताऊंगा कि धर्म से कौन-सा सुख, कैसा सुख आपको प्राप्त करना चाहिए। मेरी बात जँचे तो सुख प्राप्त करना, नहीं जँचे तो फिर जैसी आपकी इच्छा ! दूसरी बात तो यह है कि सुख माँगने की आवश्यकता ही नहीं है। बिना माँगे जो वस्तु मिल जाती हो, माँगने की जरूरत ही क्यों? आप धर्म करते रहें, सुख स्वतः मिल जाएगा!
जिस मनुष्य के मन में प्रबल धनेच्छा होगी, जो मनुष्य स्वयं के जीवन में पैसे की तीव्र कमी अनुभव करता होगा, वह मनुष्य प्रायः धर्म करेगा तो धर्मक्रिया से भी धनप्राप्ति की ही कामना करेगा ! क्योंकि 'संसार-व्यवहार पैसे के बिना चल नहीं सकता, ऐसा उनका खयाल होता है। कर्मसिद्धान्त का उसे ज्ञान नहीं होता और भाग्य पर भरोसा रख कर निष्क्रिय रह नहीं सकता है वह! मैंने एक घटना पढ़ी थी कुछ वर्ष पूर्व :
'जो मुनाफा हो, उसमें से कुछ हिस्सा अच्छे कार्य में खर्च करना!' बुजुर्ग की सलाह:
‘विलियम कोलगेट' अमेरिका का निवासी था । कोलगेट गरीब था । उसके माता-पिता अपने घर साबुन बनाते थे और शहर की गलियों में जा कर बेचते थे। गरीब लोग साबुन खरीदते, क्योंकि उनको कम दाम में साबुन मिलता था। एक दिन निराश कोलगेट को पिता ने कहा : बेटे, तुम न्यूयोर्क जाओ, तुम्हारा भाग्य वहाँ जाकर आजमाओ।' विलियम घर से निकला। गाँव की
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